त्रासदी यदि वैयक्तिक हो
तो स्वयं भुक्त-भोगी भी भूल जाता है
थोड़े-बहुत समय के बाद
किंतु इतनी बड़ी,
सामूहिक त्रासदी ....
असंभव है कि कोई भूल पाए !
क्या कोई भूल सकता है
बंगाल का दुर्भिक्ष
या बर्मा का प्लेग
या, भोपाल गैस-त्रासदी ?
निश्चय ही,
कई शताब्दियों तक
कई-कई पीढ़ियों तक
दोहराती रहेंगी केदारनाथ का जल-प्रलय
प्रकृति के भयंकर प्रतिशोध
और इस त्रासदी के लिए उत्तरदायी
व्यक्तियों और अ-नीतियों की महा-गाथाएं ...
आप सुन रहे हैं
समझ रहे हैं न ?
तो कुछ बोलते क्यों नहीं ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
तो स्वयं भुक्त-भोगी भी भूल जाता है
थोड़े-बहुत समय के बाद
किंतु इतनी बड़ी,
सामूहिक त्रासदी ....
असंभव है कि कोई भूल पाए !
क्या कोई भूल सकता है
बंगाल का दुर्भिक्ष
या बर्मा का प्लेग
या, भोपाल गैस-त्रासदी ?
निश्चय ही,
कई शताब्दियों तक
कई-कई पीढ़ियों तक
दोहराती रहेंगी केदारनाथ का जल-प्रलय
प्रकृति के भयंकर प्रतिशोध
और इस त्रासदी के लिए उत्तरदायी
व्यक्तियों और अ-नीतियों की महा-गाथाएं ...
आप सुन रहे हैं
समझ रहे हैं न ?
तो कुछ बोलते क्यों नहीं ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
1 टिप्पणी:
स्वार्थ और लालच मूक जो कर देता है । संवेदना लिए आत्म-मंथन को प्रेरित करती सामयिक अभिव्यक्ति।
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