एक सीधा-सपाट बयान है यह
तुम्हारे तथाकथित
लोकतंत्र के अंतिम छोर पर बैठे
आम आदमी का
वही जिसके नाम पर
तुम्हारी निर्बाध, निरंकुश सत्ता का जाल
फैला हुआ है
पृथ्वी से आकाश तक…
सुनो, तानाशाह !
हमने अगर चुना भी था तुम्हें
तो इसलिए
कि तुम्हारे शब्द और वस्त्र
मनुष्यों की भांति दीखते थे
कि तुम वही भाषा बोल रहे थे
जो सुनना चाहते थे हम,
इस लोकतंत्रात्मक देश के असली मालिक
हम जो चाहते थे कि
हमारा प्रतिनिधि हमारी बात सुने,
समझे और उसके अनुरूप
नीतियां बना सके
और नीतियों को कार्य-रूप में
परिणत कर सके
हम छले गए
तुम और तुम्हारे क्रीत प्रचार-तंत्र के हाथों
तुमने अपने हर वचन को भंग किया
हर वादे को तोड़ा
हर बात से मुकर गए
और सेवक से अचानक मालिक बन गए !
तुम यह भूल गए
अत्यंत सुविधाजनक रूप से
कि यह
संसार की सबसे विशाल जनसंख्या है
जिसने हर उस तानाशाह को
शिकस्त दी है
जिसके राज में किम्वदंती थी
सूरज के नहीं डूबने की ....
तुम यदि नहीं जानते तो सुन लो
तुम्हारा सूर्यास्त होने को है
कुछ ही क्षण बाद ....
कल
जब तुम्हारी अजेय सेना
थके-हारे क़दमों से लौटेगी
अपने शिविर में
तो किस तरह तैयार करोगे उसे
अगले रण के लिए ?
तुम हार गए, तानाशाह !
स्वयं अपनी ही ग़लतियों से !
अगले रण में
जीतेगी जनता
सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
तुम्हारे तथाकथित
लोकतंत्र के अंतिम छोर पर बैठे
आम आदमी का
वही जिसके नाम पर
तुम्हारी निर्बाध, निरंकुश सत्ता का जाल
फैला हुआ है
पृथ्वी से आकाश तक…
सुनो, तानाशाह !
हमने अगर चुना भी था तुम्हें
तो इसलिए
कि तुम्हारे शब्द और वस्त्र
मनुष्यों की भांति दीखते थे
कि तुम वही भाषा बोल रहे थे
जो सुनना चाहते थे हम,
इस लोकतंत्रात्मक देश के असली मालिक
हम जो चाहते थे कि
हमारा प्रतिनिधि हमारी बात सुने,
समझे और उसके अनुरूप
नीतियां बना सके
और नीतियों को कार्य-रूप में
परिणत कर सके
हम छले गए
तुम और तुम्हारे क्रीत प्रचार-तंत्र के हाथों
तुमने अपने हर वचन को भंग किया
हर वादे को तोड़ा
हर बात से मुकर गए
और सेवक से अचानक मालिक बन गए !
तुम यह भूल गए
अत्यंत सुविधाजनक रूप से
कि यह
संसार की सबसे विशाल जनसंख्या है
जिसने हर उस तानाशाह को
शिकस्त दी है
जिसके राज में किम्वदंती थी
सूरज के नहीं डूबने की ....
तुम यदि नहीं जानते तो सुन लो
तुम्हारा सूर्यास्त होने को है
कुछ ही क्षण बाद ....
कल
जब तुम्हारी अजेय सेना
थके-हारे क़दमों से लौटेगी
अपने शिविर में
तो किस तरह तैयार करोगे उसे
अगले रण के लिए ?
तुम हार गए, तानाशाह !
स्वयं अपनी ही ग़लतियों से !
अगले रण में
जीतेगी जनता
सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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