जंगल: एक
टूट गया
शेर और भेड़िये का
गठबंधन !
इसमें ख़ुश होने-जैसी
कोई बात नहीं
ख़रगोशों !
वे हिंस्र थे
और हिंस्र ही रहेंगे
वे तो अकेले भी बहुत हैं
निरीह शाकाहारियों के लिए !
जंगल: दो
क्रांतियां मनुष्यों की बस्तियों में
होती हैं
मूर्ख खरगोशो !
यहां, जंगल में
शेर ख़त्म भी हो गए तो क्या ?
चीते, भालू, भेड़िये
लकड़बग्घे कम हैं क्या ?
तुम जब तक
छिपते रहोगे अपनी मांदों में
मारे जाते रहोगे
यूं ही बेमौत !
ज़िंदा रहना चाहते हो
तो लड़ना
और जीतना सीखो।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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