( जनाब कलीम 'अव्वल' साहब की ख़िदमत में, बेहद ख़ुलूस और एहतराम के साथ )
दोहे
अल्लह दीन्ही आतमा नजर नवाजी पीर
औरन कोऊ होइये अपनो शाह कबीर
अंतर बिच झगड़ा भया को जेठौ को छोट
मन मूरख अड़ियल भया आतम काढ़े खोट
जग को का समझाइये सब मूरख के यार
का कहिबो का बूझिबो भै जूतम पैजार
साहिब मेरौ बावरो दीन्हो ज्ञान लुटाय
जाकी जेती गाठरी बांधि-बांधि लै जाय
काटि कलेजा लै चले का खंजर का बात
कौन पाप कीन्हो मुलुक शाह कियो बदजात
साहिब हम मुरदा भए ठटरी बांधो कोय
माटी की पुतली मुई धाड़-धाड़ जग रोय !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
दोहे
अल्लह दीन्ही आतमा नजर नवाजी पीर
औरन कोऊ होइये अपनो शाह कबीर
अंतर बिच झगड़ा भया को जेठौ को छोट
मन मूरख अड़ियल भया आतम काढ़े खोट
जग को का समझाइये सब मूरख के यार
का कहिबो का बूझिबो भै जूतम पैजार
साहिब मेरौ बावरो दीन्हो ज्ञान लुटाय
जाकी जेती गाठरी बांधि-बांधि लै जाय
काटि कलेजा लै चले का खंजर का बात
कौन पाप कीन्हो मुलुक शाह कियो बदजात
साहिब हम मुरदा भए ठटरी बांधो कोय
माटी की पुतली मुई धाड़-धाड़ जग रोय !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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