लड़कियां उतरें ज़मीन में
अपनी आज़ादी
और दुनिया की बेहतरी के लिए
लड़कियां अंकुरित हों
बढ़ें
फलें-फूलें
निरोग, सुंदर और हंसमुख
गेहूं की बालियों-जैसी
लड़कियां बढ़ें आगे
सागर, मैदान, पर्वतों को लांघती
अन्न-गंध बन
फैलें दुनिया के कोने-कोने में
हारे-टूटे हुओं में
प्राण फूंकती
दुनिया को मनचाहा आकार देने
लड़कियां उठ रही हैं आंधी बन कर
वह देखो
रख दिए उन्होंने पांव
खेत के भीतर !
( 1 9 8 7 )
-
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: संभवतः, 'वर्तमान साहित्य'. पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
अपनी आज़ादी
और दुनिया की बेहतरी के लिए
लड़कियां अंकुरित हों
बढ़ें
फलें-फूलें
निरोग, सुंदर और हंसमुख
गेहूं की बालियों-जैसी
लड़कियां बढ़ें आगे
सागर, मैदान, पर्वतों को लांघती
अन्न-गंध बन
फैलें दुनिया के कोने-कोने में
हारे-टूटे हुओं में
प्राण फूंकती
दुनिया को मनचाहा आकार देने
लड़कियां उठ रही हैं आंधी बन कर
वह देखो
रख दिए उन्होंने पांव
खेत के भीतर !
( 1 9 8 7 )
-
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: संभवतः, 'वर्तमान साहित्य'. पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
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