मुझे चाहिए जीवन
छल-छल कल-कल
बहते झरने-सा उद्दाम
और उन्मुक्त !
चाहिए अपने आंगन में
किलकारी
अपने छौनों की
मुस्कानें
जी-भर दूध
भूख-भर रोटी
तन-भर कपड़ा
जीवन-भर जीवन
बेरोकटोक आवाजाही
दुःख-सुख की ...
मुझे चाहिए धूप
और गेहूं के दानों में
अपने लोहू का हिस्सा पूरा
मुझे चाहिए
अपने हाथों सींचे -
दुलराए फूलों और फलों में
अपने हिस्से के कोठी-भर
गंध-स्वाद अब
मुझे चाहिए
अपने जल, अपनी माटी
अपने खेतों पर
अपना ही अधिकार
मुझे चाहिए जो जीवन
मैं बीज बो रहा हूँ उसके
ललछौहें
अपने हाड़-मांस की
खाद मिला कर !
( 1 9 8 6 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः, अभी तक अप्रकाशित। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
छल-छल कल-कल
बहते झरने-सा उद्दाम
और उन्मुक्त !
चाहिए अपने आंगन में
किलकारी
अपने छौनों की
मुस्कानें
जी-भर दूध
भूख-भर रोटी
तन-भर कपड़ा
जीवन-भर जीवन
बेरोकटोक आवाजाही
दुःख-सुख की ...
मुझे चाहिए धूप
और गेहूं के दानों में
अपने लोहू का हिस्सा पूरा
मुझे चाहिए
अपने हाथों सींचे -
दुलराए फूलों और फलों में
अपने हिस्से के कोठी-भर
गंध-स्वाद अब
मुझे चाहिए
अपने जल, अपनी माटी
अपने खेतों पर
अपना ही अधिकार
मुझे चाहिए जो जीवन
मैं बीज बो रहा हूँ उसके
ललछौहें
अपने हाड़-मांस की
खाद मिला कर !
( 1 9 8 6 )
-सुरेश स्वप्निल
* संभवतः, अभी तक अप्रकाशित। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
1 टिप्पणी:
Bhagwan kare aapki sabhi manokamnayen poorn ho jayen .ALL THE BEST .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ? आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
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