ख़बर यह कि
बदल गए फूलों के रंग
सफ़ेद आसमान
सफ़ेद ख़बर
रक्तहीन क्रांति ?
क्रन्तिहीन रक्त!
आस्तीनों में सांप
शब्दों को दुहते हुए
ख़ून की आख़िरी बूँद तक!
बुझे हुए स्टोव पर चाय !
आग
कौन ले गया चुरा कर
तुम्हारी ?
तुम्हारा पुंसत्व
नई सृष्टि नहीं गढ़ता
तो सोओ अभी
ठंडा है सूरज!
धूप सिर्फ़ अख़बार पर है
और तुम्हारा चेहरा
एक शाम
तनहा
उदास !
( 1983 )
- सुरेश स्वप्निल
* अभी तक अप्रकाशित
बदल गए फूलों के रंग
सफ़ेद आसमान
सफ़ेद ख़बर
रक्तहीन क्रांति ?
क्रन्तिहीन रक्त!
आस्तीनों में सांप
शब्दों को दुहते हुए
ख़ून की आख़िरी बूँद तक!
बुझे हुए स्टोव पर चाय !
आग
कौन ले गया चुरा कर
तुम्हारी ?
तुम्हारा पुंसत्व
नई सृष्टि नहीं गढ़ता
तो सोओ अभी
ठंडा है सूरज!
धूप सिर्फ़ अख़बार पर है
और तुम्हारा चेहरा
एक शाम
तनहा
उदास !
( 1983 )
- सुरेश स्वप्निल
* अभी तक अप्रकाशित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें