गुरुवार, 24 जनवरी 2013

धूप सिर्फ़ अख़बार पर है

ख़बर यह कि
बदल गए फूलों  के रंग

सफ़ेद आसमान
सफ़ेद ख़बर
रक्तहीन  क्रांति ?
क्रन्तिहीन रक्त!

आस्तीनों  में सांप
शब्दों को दुहते हुए
ख़ून की आख़िरी बूँद तक!

बुझे हुए स्टोव पर चाय !
आग
कौन ले गया चुरा कर
तुम्हारी ?

तुम्हारा पुंसत्व
नई सृष्टि नहीं गढ़ता
तो सोओ अभी
ठंडा है  सूरज!

धूप सिर्फ़ अख़बार पर है
और तुम्हारा चेहरा
एक शाम
तनहा
उदास !

                                                            ( 1983 )

                                                - सुरेश स्वप्निल 

* अभी तक अप्रकाशित 

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