सागर की चौड़ी छाती पर
सूरज की धुंधलाती आभा
तैर रही है।
लौट रहे हैं पंछी घर को
धीरे-धीरे ......
दर्पण-जैसे शांत नीर को
चीर रही हैं दो नौकाएं
उन मछुओं की
जिनको मछली नहीं मिली है
कल-परसों से।
वे अपनी झोपड़-पट्टी में
आज लौट कर नहीं आएंगे
ख़ाली हाथों।
-हो सकता है आज उठे
तूफ़ान भयंकर
मौसम के विभाग से
ऐसी ख़बर मिली है।
(1977)
-सुरेश स्वप्निल
सूरज की धुंधलाती आभा
तैर रही है।
लौट रहे हैं पंछी घर को
धीरे-धीरे ......
दर्पण-जैसे शांत नीर को
चीर रही हैं दो नौकाएं
उन मछुओं की
जिनको मछली नहीं मिली है
कल-परसों से।
वे अपनी झोपड़-पट्टी में
आज लौट कर नहीं आएंगे
ख़ाली हाथों।
-हो सकता है आज उठे
तूफ़ान भयंकर
मौसम के विभाग से
ऐसी ख़बर मिली है।
(1977)
-सुरेश स्वप्निल
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