'तुम उस दिन मारे जाओगे
जब
जंगल तुम्हारे घर आएगा !'
सैकड़ों साल हो गए
इस बात को क़लम से
और जंगल
आज तक नहीं पहुंचा
सत्ताधीश के घर तक !
लेकिन कोई समस्या नहीं
जंगल की गहराई में देर है
अंधेर नहीं
कुछ दिन और इंतज़ार करो, तानाशाह !
जंगल आ ही रहा है
तुम्हारे घर की तरफ़
तुम चाहो तो
तोप-तलवार ले आओ अपने
हमारी अदना-सी क़लम के मुक़ाबले !
जंगल जानता है
तोप-तलवार
और क़लम का फ़र्क़ !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
...
जब
जंगल तुम्हारे घर आएगा !'
सैकड़ों साल हो गए
इस बात को क़लम से
और जंगल
आज तक नहीं पहुंचा
सत्ताधीश के घर तक !
लेकिन कोई समस्या नहीं
जंगल की गहराई में देर है
अंधेर नहीं
कुछ दिन और इंतज़ार करो, तानाशाह !
जंगल आ ही रहा है
तुम्हारे घर की तरफ़
तुम चाहो तो
तोप-तलवार ले आओ अपने
हमारी अदना-सी क़लम के मुक़ाबले !
जंगल जानता है
तोप-तलवार
और क़लम का फ़र्क़ !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
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