न जाने कितने मुखौटे हैं
एक-एक मुखौटे के नीचे ...
क्या कभी सामने आ सकता है
इन मुखौटों का सत्य
इनका असली चेहरा ?
मनुष्य इतना ढोंगी
इतना पाखंडी कैसे हो गया
इतने कम समय में ?
अभी बहुत अधिक दिन नहीं हुए
जब गांधी-नेहरू
और भगत सिंह जैसे मनुष्य भी
जन्म लेते थे इसी देश की मिट्टी में
और लोकतंत्र की तथाकथित अवधारणाओं को
चुनौती देते
चारु मजूमदार और अवतार सिंह पाश जैसे
दुर्दम्य योद्धा भी
हम कहां जा रहे हैं, अंततः ?
क्या यह अंत है
महान भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ?
क्या हम उसी राह पर तो नहीं
जिस पर चल कर
नष्ट हो गई थी मया संस्कृति
या अफ़ग़ानिस्तान या इराक़
या मिस्र महान की सभ्यताएं ???
प्रश्न केवल एक लोकसभा-चुनाव तक
सीमित नहीं रह गया है अब
हमें चुनना है कुछ और भी
मसलन, सौ साल बाद के
हमारे वंशजों का भविष्य भी !
काश ! हमारा विवेक हमारे साथ ही रहे
अपने प्रतिनिधि चुनते समय ...
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
....
एक-एक मुखौटे के नीचे ...
क्या कभी सामने आ सकता है
इन मुखौटों का सत्य
इनका असली चेहरा ?
मनुष्य इतना ढोंगी
इतना पाखंडी कैसे हो गया
इतने कम समय में ?
अभी बहुत अधिक दिन नहीं हुए
जब गांधी-नेहरू
और भगत सिंह जैसे मनुष्य भी
जन्म लेते थे इसी देश की मिट्टी में
और लोकतंत्र की तथाकथित अवधारणाओं को
चुनौती देते
चारु मजूमदार और अवतार सिंह पाश जैसे
दुर्दम्य योद्धा भी
हम कहां जा रहे हैं, अंततः ?
क्या यह अंत है
महान भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ?
क्या हम उसी राह पर तो नहीं
जिस पर चल कर
नष्ट हो गई थी मया संस्कृति
या अफ़ग़ानिस्तान या इराक़
या मिस्र महान की सभ्यताएं ???
प्रश्न केवल एक लोकसभा-चुनाव तक
सीमित नहीं रह गया है अब
हमें चुनना है कुछ और भी
मसलन, सौ साल बाद के
हमारे वंशजों का भविष्य भी !
काश ! हमारा विवेक हमारे साथ ही रहे
अपने प्रतिनिधि चुनते समय ...
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
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