कोई 25-30 बच्चे
खड़े हैं समुद्र-तट पर
ज़ोर-ज़ोर से फूंक मारते हुए
बच्चे आशा कर रहे हैं
कि उनकी फूंकों से
पैदा हो जाएगा एक महा-चक्रवात
और फैल जाएगा
पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर !
स्पष्टत:, बच्चों को बहका दिया है
किसी मूर्ख महत्वाकांक्षी ने !
बहकाए हुए बच्चे
नहीं जानते बेचारे
कि उनकी फूंक से
केवल मोमबत्तियां ही बुझ सकती हैं
वे भी, जन्मदिन के केक वाली !
कोई समझाता क्यों नहीं बच्चों को
कि जिस हवा की आशा
वे कर रहे हैं
उसके लिए बहुत बड़े पर्यावरणीय परिवर्त्तन
आवश्यक हैं
जो उस मूर्ख महत्वाकांक्षी के लिए
कभी संभव नहीं
जो उन्हें
बहका कर ले आया है
यहां तक !
बच्चे अंततः
बच्चे ही तो हैं
लेकिन वे बड़ों से कहीं अधिक
बुद्धिमान भी हैं
वे जिस दिन पहुंचेंगे
सत्य की तह तक
उस दिन
सचमुच जन्म लेगा एक महा-चक्रवात
जो समाप्त कर देगा
सारे मूर्ख महत्वाकांक्षियों को
और उनके द्वारा
फैलाए जा रहे
हवाओं के भ्रमों को !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
...
खड़े हैं समुद्र-तट पर
ज़ोर-ज़ोर से फूंक मारते हुए
बच्चे आशा कर रहे हैं
कि उनकी फूंकों से
पैदा हो जाएगा एक महा-चक्रवात
और फैल जाएगा
पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर !
स्पष्टत:, बच्चों को बहका दिया है
किसी मूर्ख महत्वाकांक्षी ने !
बहकाए हुए बच्चे
नहीं जानते बेचारे
कि उनकी फूंक से
केवल मोमबत्तियां ही बुझ सकती हैं
वे भी, जन्मदिन के केक वाली !
कोई समझाता क्यों नहीं बच्चों को
कि जिस हवा की आशा
वे कर रहे हैं
उसके लिए बहुत बड़े पर्यावरणीय परिवर्त्तन
आवश्यक हैं
जो उस मूर्ख महत्वाकांक्षी के लिए
कभी संभव नहीं
जो उन्हें
बहका कर ले आया है
यहां तक !
बच्चे अंततः
बच्चे ही तो हैं
लेकिन वे बड़ों से कहीं अधिक
बुद्धिमान भी हैं
वे जिस दिन पहुंचेंगे
सत्य की तह तक
उस दिन
सचमुच जन्म लेगा एक महा-चक्रवात
जो समाप्त कर देगा
सारे मूर्ख महत्वाकांक्षियों को
और उनके द्वारा
फैलाए जा रहे
हवाओं के भ्रमों को !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
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