वहां बैठे हैं
डोर खींचने वाले
वॉशिंग्टन
नागपुर
और मुम्बई में....
सब जानते हैं
कि अपनी मर्ज़ी से
हिल भी नहीं सकतीं
कठपुतलियां…!
डोर खींचने वाले
तय करते हैं
कठपुतलियों की हर गतिविधि
यह भी
कि कुल कितनी जानें ली जाएंगी
लोकतंत्र के महा-उत्सव में
कैसे नियंत्रण में रखी जाएंगी
कठपुतली-सेनाएं
कितनी ख़ुराक़ ज़रूरी है
इन मनुष्य-भक्षी कठपुतलियों के लिए !
सवाल यह भी है
कि अपने ख़ून-पसीने से
देश का भाग्य गढ़ने वाले
क्या सचमुच इतने बेचारे हैं
कि तोड़ न सकें
कठपुतलियों
और उनकी डोर हाथ में रखने वालों के
देश-द्रोही कुचक्र ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
डोर खींचने वाले
वॉशिंग्टन
नागपुर
और मुम्बई में....
सब जानते हैं
कि अपनी मर्ज़ी से
हिल भी नहीं सकतीं
कठपुतलियां…!
डोर खींचने वाले
तय करते हैं
कठपुतलियों की हर गतिविधि
यह भी
कि कुल कितनी जानें ली जाएंगी
लोकतंत्र के महा-उत्सव में
कैसे नियंत्रण में रखी जाएंगी
कठपुतली-सेनाएं
कितनी ख़ुराक़ ज़रूरी है
इन मनुष्य-भक्षी कठपुतलियों के लिए !
सवाल यह भी है
कि अपने ख़ून-पसीने से
देश का भाग्य गढ़ने वाले
क्या सचमुच इतने बेचारे हैं
कि तोड़ न सकें
कठपुतलियों
और उनकी डोर हाथ में रखने वालों के
देश-द्रोही कुचक्र ???
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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