शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

हर चुनाव में... !

शोर  थमा  नहीं  है  अभी
चुनाव  का
सुबह  होने   से  पहले  ही  आ  जाते  हैं
हर  दल  के  प्रत्याशियों  के  वाहन
अपने-अपने  नारे  और  फूहड़  गीतों  को
लाउडस्पीकर  पर  बजाते  हुए....

बहुत  से  क़ानून,  बहुत  से  नियम  हैं
आम  आदमी  को  शोर  से  बचाने   के
न  कोई  जानता  है  न  मानता  है
न  ही  किसी  की  रुचि  है
क़ानून  के  पालन  में ....

जब  पालन 
सुनिश्चित  नहीं  किया  जा  सकता
तो  बनाते  क्यों  हैं
तरह-तरह  के  नियम-क़ानून ?!!

किसी  को  नहीं  पता
कि  कुल  कितने  आम  आदमी
खो  देते  हैं  अपनी  श्रवण-शक्ति
हर  चुनाव  में !

                                                      (2013)

                                               -सुरेश  स्वप्निल 

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1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

सच आम आदमी तो आम बनकर ही रह जाता है ...जैसे रस्ते में पेड़ लगे आम को कोई भी खाने को लालायित रहा है ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना