शोर थमा नहीं है अभी
चुनाव का
सुबह होने से पहले ही आ जाते हैं
हर दल के प्रत्याशियों के वाहन
अपने-अपने नारे और फूहड़ गीतों को
लाउडस्पीकर पर बजाते हुए....
बहुत से क़ानून, बहुत से नियम हैं
आम आदमी को शोर से बचाने के
न कोई जानता है न मानता है
न ही किसी की रुचि है
क़ानून के पालन में ....
जब पालन
सुनिश्चित नहीं किया जा सकता
तो बनाते क्यों हैं
तरह-तरह के नियम-क़ानून ?!!
किसी को नहीं पता
कि कुल कितने आम आदमी
खो देते हैं अपनी श्रवण-शक्ति
हर चुनाव में !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
.
चुनाव का
सुबह होने से पहले ही आ जाते हैं
हर दल के प्रत्याशियों के वाहन
अपने-अपने नारे और फूहड़ गीतों को
लाउडस्पीकर पर बजाते हुए....
बहुत से क़ानून, बहुत से नियम हैं
आम आदमी को शोर से बचाने के
न कोई जानता है न मानता है
न ही किसी की रुचि है
क़ानून के पालन में ....
जब पालन
सुनिश्चित नहीं किया जा सकता
तो बनाते क्यों हैं
तरह-तरह के नियम-क़ानून ?!!
किसी को नहीं पता
कि कुल कितने आम आदमी
खो देते हैं अपनी श्रवण-शक्ति
हर चुनाव में !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
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1 टिप्पणी:
सच आम आदमी तो आम बनकर ही रह जाता है ...जैसे रस्ते में पेड़ लगे आम को कोई भी खाने को लालायित रहा है ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना
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