क़िले के अवशेषों में
भटकती हैं आत्माएं
युध्द में मारे गए सैनिकों की …
वे शत्रुओं के वंशजों के साथ-साथ
अपने ही राजा के वंशजों को भी
ढूंढ रही हैं
कोई दो-तीन सौ वर्ष से
वे आत्माएं
न्याय चाहती हैं अपने वंशजों के लिए
अपने राजा के वंशजों से
और क्षमा चाहती हैं
उन शत्रुओं के वंशजों से
जो मारे गए थे
उनके हाथों …
शरीर की मृत्यु के साथ ही
जीवित हो उठती है
मनुष्य की प्रज्ञा
प्रकट हो जाते हैं सारे रहस्य
सत्य-असत्य
और उचित-अनुचित के भेद…
शरीर की मृत्यु का अर्थ
न्याय और अन्याय के बीच
अंतर की मृत्यु
नहीं होता
और न ही अपराध और दण्ड के
प्रतिमान मर जाते हैं
दण्ड तो भोगना ही होगा
यदि अपराधी नहीं
तो उसकी तमाम पीढ़ियों को
अपराध के अंतिम चिह्न
नष्ट होने तक….
मैं जानता हूं कि मुझे
'प्रतिक्रिया वादी', 'संशोधन वादी'
'भाग्य वादी' ….
और पता नहीं किन-किन नामों से
पुकारा जाएगा
हो सकता है कि मुझे
'पक्ष-द्रोही', 'वर्ग-द्रोही'
या 'धर्म-द्रोही', 'देश-द्रोही' भी
मान लिया जाए ….
क्या मृत्यु का भय
इतना बड़ा है
कि मनुष्य
न्याय की मांग छोड़ दे… ?
क्या शताब्दियां बीतने से
ख़त्म हो जाते हैं
अपराध ????
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
भटकती हैं आत्माएं
युध्द में मारे गए सैनिकों की …
वे शत्रुओं के वंशजों के साथ-साथ
अपने ही राजा के वंशजों को भी
ढूंढ रही हैं
कोई दो-तीन सौ वर्ष से
वे आत्माएं
न्याय चाहती हैं अपने वंशजों के लिए
अपने राजा के वंशजों से
और क्षमा चाहती हैं
उन शत्रुओं के वंशजों से
जो मारे गए थे
उनके हाथों …
शरीर की मृत्यु के साथ ही
जीवित हो उठती है
मनुष्य की प्रज्ञा
प्रकट हो जाते हैं सारे रहस्य
सत्य-असत्य
और उचित-अनुचित के भेद…
शरीर की मृत्यु का अर्थ
न्याय और अन्याय के बीच
अंतर की मृत्यु
नहीं होता
और न ही अपराध और दण्ड के
प्रतिमान मर जाते हैं
दण्ड तो भोगना ही होगा
यदि अपराधी नहीं
तो उसकी तमाम पीढ़ियों को
अपराध के अंतिम चिह्न
नष्ट होने तक….
मैं जानता हूं कि मुझे
'प्रतिक्रिया वादी', 'संशोधन वादी'
'भाग्य वादी' ….
और पता नहीं किन-किन नामों से
पुकारा जाएगा
हो सकता है कि मुझे
'पक्ष-द्रोही', 'वर्ग-द्रोही'
या 'धर्म-द्रोही', 'देश-द्रोही' भी
मान लिया जाए ….
क्या मृत्यु का भय
इतना बड़ा है
कि मनुष्य
न्याय की मांग छोड़ दे… ?
क्या शताब्दियां बीतने से
ख़त्म हो जाते हैं
अपराध ????
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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