धर्म, जाति, दलित-सवर्ण, स्त्री-पुरुष,
अमीर-ग़रीब….
राजनीति के क़साई
मनुष्यता का क़ीमा बना रहे हैं
आजकल….
चुनाव आते-आते
वे इतने टुकड़ों में बांट चुके होंगे
मनुष्यता को
शक्ल तक न पहचान पाएं
आने वाली कई पीढ़ियां !
अब मेरी लाश को ही देखो
मेरा कुत्ता तक असमंजस में है
कि रोए
या भौंक-भौंक कर
आसमान उठा ले सर पर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
अमीर-ग़रीब….
राजनीति के क़साई
मनुष्यता का क़ीमा बना रहे हैं
आजकल….
चुनाव आते-आते
वे इतने टुकड़ों में बांट चुके होंगे
मनुष्यता को
शक्ल तक न पहचान पाएं
आने वाली कई पीढ़ियां !
अब मेरी लाश को ही देखो
मेरा कुत्ता तक असमंजस में है
कि रोए
या भौंक-भौंक कर
आसमान उठा ले सर पर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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