अपने-अपने घरौंदों में दुबके हुए
शांति-प्रेमी देश-भक्त नागरिकों, सुनो
सुनो सभी
सुसंस्कृत, सुशिक्षित
सभ्य-जनों, सुनो
सुनो हे जन-गण-मन गायकों
क़ानून के पालनहारो, सुनो
सुनो, क्योंकि तुम
केवल सुनना ही जानते हो
तुम रेडियो सुनते हो
और सच मान लेते हो
टी . वी . देखते हो
और सच मान लेते हो
अख़बार पढ़ते हो और छपे हुए
हर शब्द को
अकाट्य प्रमाण मान लेते हो ....
तुम्हें केवल मानना ही आता है
प्रश्न करना तो कब का भूल चुके हो तुम
हर कोई ईश्वर बन जाता है तुम्हारा
यहां तक कि नून-तेल-लकड़ी बेचने वाला भी
और शक्कर से मधुमेह का
उपचार करने वाला भी ....
जब तुम्हारी आंखों के आगे
सड़क पर पड़ी
घायल महिला
दम तोड़ रही होती है
तब तुम बहरे हो जाते हो
जब तुम्हारे विधर्मी पड़ोसी का घर
आग के हवाले कर दिया जाता है
तुम आंखों पर हाथ रख कर
अंधे बन जाते हो
जब कोई अत्याचार का शिकार
न्याय की लड़ाई में
तुम्हें गवाह बनाना चाहता है
तुम गूंगे हो जाते हो
जब सत्ताधीश और पूंजीपतियों की सम्मिलित सेनाएं
तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों के लिए
जीवित रहने के सारे मार्ग बंद कर रही होती हैं
तुम अंधे-बहरे-गूंगे
और लंगड़े-लूले बन कर
समर्पण कर देते हो ....
तुम इसी योग्य हो
कि बीच सड़क पर रौंद दिए जाओ
और दफ़न हो जाओ एक मृत राष्ट्र की भांति
अब कभी जनपथ पर
मत आना न्याय की पुकार लगाने !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शांति-प्रेमी देश-भक्त नागरिकों, सुनो
सुनो सभी
सुसंस्कृत, सुशिक्षित
सभ्य-जनों, सुनो
सुनो हे जन-गण-मन गायकों
क़ानून के पालनहारो, सुनो
सुनो, क्योंकि तुम
केवल सुनना ही जानते हो
तुम रेडियो सुनते हो
और सच मान लेते हो
टी . वी . देखते हो
और सच मान लेते हो
अख़बार पढ़ते हो और छपे हुए
हर शब्द को
अकाट्य प्रमाण मान लेते हो ....
तुम्हें केवल मानना ही आता है
प्रश्न करना तो कब का भूल चुके हो तुम
हर कोई ईश्वर बन जाता है तुम्हारा
यहां तक कि नून-तेल-लकड़ी बेचने वाला भी
और शक्कर से मधुमेह का
उपचार करने वाला भी ....
जब तुम्हारी आंखों के आगे
सड़क पर पड़ी
घायल महिला
दम तोड़ रही होती है
तब तुम बहरे हो जाते हो
जब तुम्हारे विधर्मी पड़ोसी का घर
आग के हवाले कर दिया जाता है
तुम आंखों पर हाथ रख कर
अंधे बन जाते हो
जब कोई अत्याचार का शिकार
न्याय की लड़ाई में
तुम्हें गवाह बनाना चाहता है
तुम गूंगे हो जाते हो
जब सत्ताधीश और पूंजीपतियों की सम्मिलित सेनाएं
तुम्हारी आने वाली पीढ़ियों के लिए
जीवित रहने के सारे मार्ग बंद कर रही होती हैं
तुम अंधे-बहरे-गूंगे
और लंगड़े-लूले बन कर
समर्पण कर देते हो ....
तुम इसी योग्य हो
कि बीच सड़क पर रौंद दिए जाओ
और दफ़न हो जाओ एक मृत राष्ट्र की भांति
अब कभी जनपथ पर
मत आना न्याय की पुकार लगाने !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें