सेनाएं भेज दी गई हैं
विद्रोह को कुचलने के लिए
और दो-चार सौ लाशों का इंतज़ार कीजिए
कुछ दिन कहीं-कोई आवाज़ नहीं उठेगी
बंदूक़ों के डर से
सेना के जवान
खुले घूमेंगे
अपने आक़ाओं के हुक्म बजाने के लिए
कम होती रहेगी जनसंख्या
युवा स्त्री-पुरुषों की
नज़र आते ही
मार दिए जाते रहेंगे
निर्दोष मनुष्य
सरकारें ख़ुद ही पीठ थपथपाती रहेंगी अपनी
चिल्लाते रहेंगे मानवाधिकार-कार्यकर्त्ता ....
सदियों से यही होता आया है
अपनी मनुष्यता बचाए रखने की
कोशिश करने वालों के साथ
जब फिर अति हो जाएगी
बंदूक़ों के 'न्याय' की
तो फिर उठ खड़े होंगे लोग
तेलंगाना से छत्तीसगढ़ तक…
हर बार सेनाएं ही जीतें
यह ज़रूरी नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
विद्रोह को कुचलने के लिए
और दो-चार सौ लाशों का इंतज़ार कीजिए
कुछ दिन कहीं-कोई आवाज़ नहीं उठेगी
बंदूक़ों के डर से
सेना के जवान
खुले घूमेंगे
अपने आक़ाओं के हुक्म बजाने के लिए
कम होती रहेगी जनसंख्या
युवा स्त्री-पुरुषों की
नज़र आते ही
मार दिए जाते रहेंगे
निर्दोष मनुष्य
सरकारें ख़ुद ही पीठ थपथपाती रहेंगी अपनी
चिल्लाते रहेंगे मानवाधिकार-कार्यकर्त्ता ....
सदियों से यही होता आया है
अपनी मनुष्यता बचाए रखने की
कोशिश करने वालों के साथ
जब फिर अति हो जाएगी
बंदूक़ों के 'न्याय' की
तो फिर उठ खड़े होंगे लोग
तेलंगाना से छत्तीसगढ़ तक…
हर बार सेनाएं ही जीतें
यह ज़रूरी नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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