मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

अंधी आस्थाओं के नाम पर !

अच्छी  तरह  से  सोचिए
और  तय  कीजिए
कि  कितने  ईश्वर  हैं  हमारे  इर्द-गिर्द !

ऐसा  क्या  अपराध  करते  हैं  हम
कौन-सी  आवश्यकताएं  हैं  जो  केवल
ईश्वर  ही  पूरी  करते  हैं ?

कौन  हैं  वे  लोग
जो  ईश्वर  के  प्रतिनिधि  बने  हुए  हैं
क्या  कल  इन्हीं  में  से  कुछ  ईश्वर  के  अवतार
फिर  कुछ  समय  बाद  स्वयं  ये  ही
ईश्वर   नहीं  बन  जाएंगे ?

एक  सूची  बनाइये  इन  सब  की
और  उन  सामानों  की  जो  ये  आधुनिक  ईश्वर
बेच  रहे  हैं  आपको
बाज़ार  से  चौगुने  दामों  पर
और  तुलना  कीजिए  मूल्य  और  गुणवत्ता  की !

ठीक, अब  जवाब  ढूंढिए  उन  प्रश्नों  के
जो  इस  अभ्यास  से  उभरे  हैं
आपके  मन-मस्तिष्क  में

ईश्वर  ने  किस  को  नियुक्त  किया  है
अपने  प्रतिनिधि  के  रूप  में
किस  के  पास  है  ईश्वर  का  अनुमति-पत्र  ?
किस  ने  घोषित  किया  कि  अमुक  व्यक्ति  अवतार  है
ईश्वर  का ?
यदि  ये  लोग
जो अपने-आप को  ईश्वर का प्रतिनिधि,
अवतार  अथवा  स्वयं  ईश्वर  ही
मानते  और  मनवाते  हैं
ये  लोग जो  योग, भागवत-कथा से  लेकर
साबुन, तेल, दाल-दलिया  तक  बेच  रहे  हैं
क्या  अंतर  है  इनमें  और  आपके
किराना-व्यापारी  में ?

प्रश्न  हजारों  होने  चाहिए
आपके  मन-मस्तिष्क  में
और  हर  प्रश्न  के  उत्तर  की  आवश्यकता  भी ....

यदि  आपके  मन-मस्तिष्क  में
न  कोई  प्रश्न  ही  है
न  उत्तर  पाने  की  ललक
तो  आप  इसी  योग्य  हैं
कि  हर  व्यापारी  को  आप  ईश्वर  मानें
और  ठगे  जाते  रहें  अनंतकाल  तक
अंधी  आस्थाओं  के  नाम  पर !

                                                                  ( 2013 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

*नवीनतम रचना। पूर्णतः मौलिक, अप्रकाशित/अप्रसारित। प्रकाशन हेतु सभी के लिए उपलब्ध।

2 टिप्‍पणियां:

Shadab Husain ने कहा…

Suresh JI.. Bahut me tezi se failti huyiproblem ko aapne ujagar kiya hai.
Very nice!!

Rajendra kumar ने कहा…

आज जिधर भी देखिये उधर ईश्वर के प्रतिनिधि मिल जायेंगे,ईश्वर तो हमारे अन्दर ही हैं.बेहतरीन प्रस्तुती.

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