1.
आप
किस दिल की बात करते हैं ?
वो, जिसे दे के
आप ही को हम
रोज़ जीते हैं
रोज़ मरते हैं !
2.
छोड़िये भी,
कहां की ले बैठे ?
हम तो अपने ही दिल से
हैरां हैं
आप अपना भी हमें दे बैठे !
3.
ख़त्म
हो जाएगा सफ़र अपना
राह में रूठ गए
आप अगर,
चाक कर लेंगे हम जिगर अपना !
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: दैनिक 'नव-भारत', रायपुर, रविवासरीय। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
आप
किस दिल की बात करते हैं ?
वो, जिसे दे के
आप ही को हम
रोज़ जीते हैं
रोज़ मरते हैं !
2.
छोड़िये भी,
कहां की ले बैठे ?
हम तो अपने ही दिल से
हैरां हैं
आप अपना भी हमें दे बैठे !
3.
ख़त्म
हो जाएगा सफ़र अपना
राह में रूठ गए
आप अगर,
चाक कर लेंगे हम जिगर अपना !
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
* प्रकाशन: दैनिक 'नव-भारत', रायपुर, रविवासरीय। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
1 टिप्पणी:
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ,आभार.
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