बोल मजूरा हल्ला बोल
बोल जवाना हल्ला बोल
बोल किसाना हल्ला बोल
हल्ला बोल कि हिल जाए धरती
डोले आकाश ...
सदियों से तेरी मेहनत का फल
औरों ने खाया है
नहीं-नहीं अब सोना कैसा
सूरज सिर पर आया है
हुआ सबेरा आँखें खोल
बाज़ू की ताक़त को तौल
ले अपनी मेहनत का मोल
तू सब-कुछ है अपने मन में
पैदा कर विश्वास ...
बोल मजूरा हल्ला बोल
जाग कि दुनियां को बतला दे
क्या है तेरी क़ीमत
अपने मेहनतकश हाथों से
लिख दे जग की क़िस्मत
तुझसे आँख मिलाए कौन
आंधी से टकराए कौन
अपनी मौत बुलाए कौन
कब तक तुझसे हार न मानेंगे
क़ातिल एहसास ....
बोल मजूरा हल्ला बोल
बोल जवाना हल्ला बोल
बोल किसाना हल्ला बोल !
(1 मई,1976 )
-सुरेश स्वप्निल
*मौलिक/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु सर्वसुलभ, केवल सूचना आवश्यक।
बोल जवाना हल्ला बोल
बोल किसाना हल्ला बोल
हल्ला बोल कि हिल जाए धरती
डोले आकाश ...
सदियों से तेरी मेहनत का फल
औरों ने खाया है
नहीं-नहीं अब सोना कैसा
सूरज सिर पर आया है
हुआ सबेरा आँखें खोल
बाज़ू की ताक़त को तौल
ले अपनी मेहनत का मोल
तू सब-कुछ है अपने मन में
पैदा कर विश्वास ...
बोल मजूरा हल्ला बोल
जाग कि दुनियां को बतला दे
क्या है तेरी क़ीमत
अपने मेहनतकश हाथों से
लिख दे जग की क़िस्मत
तुझसे आँख मिलाए कौन
आंधी से टकराए कौन
अपनी मौत बुलाए कौन
कब तक तुझसे हार न मानेंगे
क़ातिल एहसास ....
बोल मजूरा हल्ला बोल
बोल जवाना हल्ला बोल
बोल किसाना हल्ला बोल !
(1 मई,1976 )
-सुरेश स्वप्निल
*मौलिक/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु सर्वसुलभ, केवल सूचना आवश्यक।
1 टिप्पणी:
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना की प्रस्तुति,आभार.
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