पिता की मूंछें
पिता की मूंछें थीं रौबदार
पूरे चेहरे में
तलवार-सी तनी
मूंछें थीं
तो रौबीले थे पिता
गर्वीले थे पिता
हम पांच भाई-बहन
पिता की तरह
पिता की मूंछों को भी
परिवार का सदस्य मानते
और सेवा करते
एकाध भी दिखता सफ़ेद बाल
तो ऐसे जुटते निकालने
जैसे कोई धब्बा
पिता के चेहरे पर
जीवन-भर पिता ने मूंछें नहीं काटीं
जैसे जीवन-भर पिता
झूठ नहीं बोले
स्टालिन की तरह थीं पिता की मूंछें
चौड़ी
रौबीली
अनुशासन प्रिय।
-नासिर अहमद सिकन्दर
*नासिर के संग्रह 'इस वक़्त मेरा कहा' से, सप्रेम।
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