यह रक्त है, महाशय !
शत-प्रतिशत शुद्ध और प्राकृतिक
मानव-रक्त !
जब तक यह बहता है शिराओं में
केवल तभी तक संवाहक है यह
तुम्हारी सदा-अतृप्त पूंजीवादी लिप्सा
और तथाकथित सुधारवादी अवधारणाओं
और सर्वग्रासी प्रगति का !
ओ पूंजी के निरंतर वर्द्धमान पर्वतों के स्वामियों !
तुम्हें स्मरण नहीं संभवतः
कि इसका यथोचित मूल्य भी चुकाना होता है
किसी भी अन्य भौतिक संसाधन की भांति ...!
इसके स्वर को कुचलने का विचार भी न लाना
अपने मस्तिष्क में
यह मत सोचना कि तुम्हारे दमन के तमाम उपकरण
काम में आएंगे
तुम्हारी निर्द्वन्द, निरंकुश सत्ता को
शास्वत बनाए रखने में !
यह रक्त है, महाशय
विशुद्ध मानव-रक्त
इसकी एक-एक बूँद में समाहित है
हज़ारों नाभिकीय बमों की शक्ति
यह रक्त है, महाशय
जब तक शिराओं में है तभी तक सुरक्षित हो तुम
और तुम्हारे आर्थिक साम्राज्य !
शिराओं से बाहर आते ही
यह विनाश की अकल्पनीय लीला भी रच सकता है !
सैकड़ों ज्वालामुखियों से निःसृत
लावे की अबाध्य, अबंध्य नदियों से अधिक प्रलयकारी !
समय है, संभल जाओ
अगली बार
अपनी सशस्त्र सेनाओं को
मनुष्यों के समूह पर फ़ायर का आदेश देने से पहले
सोच लेना अवश्य
कि भूमि पर गिरी प्रत्येक मानव-रक्त का मूल्य क्या है
और चुकाओगे कैसे ????
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
* नवीनतम, पूर्णतः मौलिक/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
शत-प्रतिशत शुद्ध और प्राकृतिक
मानव-रक्त !
जब तक यह बहता है शिराओं में
केवल तभी तक संवाहक है यह
तुम्हारी सदा-अतृप्त पूंजीवादी लिप्सा
और तथाकथित सुधारवादी अवधारणाओं
और सर्वग्रासी प्रगति का !
ओ पूंजी के निरंतर वर्द्धमान पर्वतों के स्वामियों !
तुम्हें स्मरण नहीं संभवतः
कि इसका यथोचित मूल्य भी चुकाना होता है
किसी भी अन्य भौतिक संसाधन की भांति ...!
इसके स्वर को कुचलने का विचार भी न लाना
अपने मस्तिष्क में
यह मत सोचना कि तुम्हारे दमन के तमाम उपकरण
काम में आएंगे
तुम्हारी निर्द्वन्द, निरंकुश सत्ता को
शास्वत बनाए रखने में !
यह रक्त है, महाशय
विशुद्ध मानव-रक्त
इसकी एक-एक बूँद में समाहित है
हज़ारों नाभिकीय बमों की शक्ति
यह रक्त है, महाशय
जब तक शिराओं में है तभी तक सुरक्षित हो तुम
और तुम्हारे आर्थिक साम्राज्य !
शिराओं से बाहर आते ही
यह विनाश की अकल्पनीय लीला भी रच सकता है !
सैकड़ों ज्वालामुखियों से निःसृत
लावे की अबाध्य, अबंध्य नदियों से अधिक प्रलयकारी !
समय है, संभल जाओ
अगली बार
अपनी सशस्त्र सेनाओं को
मनुष्यों के समूह पर फ़ायर का आदेश देने से पहले
सोच लेना अवश्य
कि भूमि पर गिरी प्रत्येक मानव-रक्त का मूल्य क्या है
और चुकाओगे कैसे ????
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
* नवीनतम, पूर्णतः मौलिक/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
1 टिप्पणी:
गहरे अर्थ लिए हुए पूर्ण लेखनी
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