जितने में पोस्टर छपे
उतने में
घर-घर में नज़र आने लगती
गौरैया !
यही कहानी है बाघ की
और लुप्त होती जानवरों
और वनस्पतियों की
तमाम प्रजातियों की !
पूंजीवाद पहले नष्ट करता है
फिर संरक्षित करता है
नमूने के लिए
प्रजातियों को !
इस नेक काम में कुछ व्यक्ति
और संस्थाएं
तो कमा ही लेती हैं पुण्य
और पैसा भी !
पूंजीवाद को गरियाओ मत
उसकी मदद करो
प्रकृति को संग्रहालय बनाने में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
* नवीनतम/ मौलिक / अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशनार्थ उपलब्ध।
उतने में
घर-घर में नज़र आने लगती
गौरैया !
यही कहानी है बाघ की
और लुप्त होती जानवरों
और वनस्पतियों की
तमाम प्रजातियों की !
पूंजीवाद पहले नष्ट करता है
फिर संरक्षित करता है
नमूने के लिए
प्रजातियों को !
इस नेक काम में कुछ व्यक्ति
और संस्थाएं
तो कमा ही लेती हैं पुण्य
और पैसा भी !
पूंजीवाद को गरियाओ मत
उसकी मदद करो
प्रकृति को संग्रहालय बनाने में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
* नवीनतम/ मौलिक / अप्रकाशित / अप्रसारित रचना। प्रकाशनार्थ उपलब्ध।
1 टिप्पणी:
चिंतनपरक सार्थक
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
एक टिप्पणी भेजें