बच्चों को रोको
कि लड़ें नहीं आपस में
छिन जाएगा उनका मैदान
अनगिनत आँखें
टटोलती हैं मैदान का विस्तार
कितने जंगज़ू सपने
गगन चुम्बी इमारतें
बहुराष्ट्रीय बाज़ार
लम्बी-चौड़ी फ़ैक्ट्रियाँ
आणविक अस्त्रों के परीक्षण-स्थल ...
बच्चों के मैदान पर
जीत के लिए
कितने हथियार !
बच्चों को कहो कि खेलें
खेलें आपस में मिल-जुल कर
बन जाएँ दीवार
मैदान
उन्हीं का है, बहरहाल।
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/अप्रसारित रचना।
कि लड़ें नहीं आपस में
छिन जाएगा उनका मैदान
अनगिनत आँखें
टटोलती हैं मैदान का विस्तार
कितने जंगज़ू सपने
गगन चुम्बी इमारतें
बहुराष्ट्रीय बाज़ार
लम्बी-चौड़ी फ़ैक्ट्रियाँ
आणविक अस्त्रों के परीक्षण-स्थल ...
बच्चों के मैदान पर
जीत के लिए
कितने हथियार !
बच्चों को कहो कि खेलें
खेलें आपस में मिल-जुल कर
बन जाएँ दीवार
मैदान
उन्हीं का है, बहरहाल।
( 1985 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/अप्रसारित रचना।
1 टिप्पणी:
सत्य कहती कविता.
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