रविवार, 27 जनवरी 2013

मैं बहुत जल्दी नहीं मरूंगा

मेरी आँख
आवारा हो गई है
सचमुच

अब देखो,
कल तुम्हारे ड्राइंग रूम में घुस गई
और टटोलती रही
पर्दे, शो-पीशेस , अल्मारियां
उनके तहख़ाने
और तुम्हारे तमाम काले-उजले पन्नों पर फुदकती
उनके चित्र  खींच लाई
वह तुम्हारे बेड रूम में भी जाती
लेकिन
तुम्हारा पालतू तोता चीख़ा
और वह लौट आई

मेरे  हाथ भी आवारा होना चाहते हैं
अबकी बार
वे  आँख के साथ जाएंगे
तुम्हारे पालतू तोते के इलाज के लिए

तुम मेरी आँख को सज़ा दोगे
मुझे मालूम है
तुम मेरे हाथों को सज़ा दोगे
मुझे मालूम है
मुझे यह भी मालूम है
कि तुम
मेरे हर उस अंग को सज़ा दोगे
जो तुम्हारे निर्द्वन्द साम्राज्य में
घुसपैठ करेगा

मैं ज़्यादा दिन नहीं जिऊंगा
मैं जानता हूँ
मैं बहुत जल्दी नहीं मरूंगा
यह तुम भी जानते हो।

                                                ( 1982 )

                                     -सुरेश स्वप्निल

* अब तक अप्रकाशित/अप्रसारित रचना, प्रकाशनार्थ उपलब्ध।


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