किसी भ्रम में मत रहना
जहांपनाह !
यह वह जनता नहीं है
जो स्मृति-दोष का शिकार थी
और भूल जाती थी हर बार
शासकों के अत्याचार
और भ्रष्टाचार
इसके पास
तुम्हारे सारे कुकर्मों का
हिसाब है !
यह जनता
किसी और ही मिट्टी की बनी है
और जानती है
कैसे गिराए जाते हैं
सिंहासन
कैसे ठिकाने लगाई जा सकती है
सत्ताधारियों की बुद्धि
तुम्हें चेतावनी है यह
उस नाकारा जनता की
उसी आम आदमी की
जिसे मूर्ख बना कर
तुम आ पहुंचे हो
सिंहासन तक
यह जनता जानती है
तख़्त पर बैठाना
मगर उससे भी पहले यह कि
कैसे उतारा जा सकता है
शहंशाहों को तख़्त से !
जनता को धोखा मत देना
जहांपनाह !
यह छोड़ेगी नहीं तुम्हें
और तुम्हारी भावी पीढ़ियों को !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
....
जहांपनाह !
यह वह जनता नहीं है
जो स्मृति-दोष का शिकार थी
और भूल जाती थी हर बार
शासकों के अत्याचार
और भ्रष्टाचार
इसके पास
तुम्हारे सारे कुकर्मों का
हिसाब है !
यह जनता
किसी और ही मिट्टी की बनी है
और जानती है
कैसे गिराए जाते हैं
सिंहासन
कैसे ठिकाने लगाई जा सकती है
सत्ताधारियों की बुद्धि
तुम्हें चेतावनी है यह
उस नाकारा जनता की
उसी आम आदमी की
जिसे मूर्ख बना कर
तुम आ पहुंचे हो
सिंहासन तक
यह जनता जानती है
तख़्त पर बैठाना
मगर उससे भी पहले यह कि
कैसे उतारा जा सकता है
शहंशाहों को तख़्त से !
जनता को धोखा मत देना
जहांपनाह !
यह छोड़ेगी नहीं तुम्हें
और तुम्हारी भावी पीढ़ियों को !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
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