भ्रम कहां टूटते हैं
इस देश में ?
एक भ्रम टूटता लगता है
तो और सौ नए भ्रम
पैदा कर दिए जाते हैं
समाज के हर छोर से
प्रकट हो जाते हैं
भ्रमों के समर्थक
भीड़ बढ़ती चली जाती है
हर भगवा, हर हरे रंग के लिबास वालों के
इर्द-गिर्द !
जो लोग बिना भ्रम के
जीना चाहते हैं
वे क़रार दिए जाते हैं
धर्म और राष्ट्र के शत्रु
यहां तक कि आतंकवादी भी !
शासक-वर्ग चाहता है
हर भ्रम के आस-पास जुटने वाली
भीड़ को बढ़ाते जाना
अगले चुनाव में
वोटों की फ़सल काटने के लिए
और हम हैं
कुछ नास्तिक, अनीश्वरवादी
हर भ्रम के विरुद्ध
सीना तान कर खड़े हो जाने वाले
सेना, पुलिस और 'धर्म-रक्षकों' से
दो-दो हाथ करने !
आप चाहें तो
कह सकते हैं मुझे भी
एक नया भ्रम
किसी और ईश्वर का अवतार !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
...
इस देश में ?
एक भ्रम टूटता लगता है
तो और सौ नए भ्रम
पैदा कर दिए जाते हैं
समाज के हर छोर से
प्रकट हो जाते हैं
भ्रमों के समर्थक
भीड़ बढ़ती चली जाती है
हर भगवा, हर हरे रंग के लिबास वालों के
इर्द-गिर्द !
जो लोग बिना भ्रम के
जीना चाहते हैं
वे क़रार दिए जाते हैं
धर्म और राष्ट्र के शत्रु
यहां तक कि आतंकवादी भी !
शासक-वर्ग चाहता है
हर भ्रम के आस-पास जुटने वाली
भीड़ को बढ़ाते जाना
अगले चुनाव में
वोटों की फ़सल काटने के लिए
और हम हैं
कुछ नास्तिक, अनीश्वरवादी
हर भ्रम के विरुद्ध
सीना तान कर खड़े हो जाने वाले
सेना, पुलिस और 'धर्म-रक्षकों' से
दो-दो हाथ करने !
आप चाहें तो
कह सकते हैं मुझे भी
एक नया भ्रम
किसी और ईश्वर का अवतार !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
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