शुक्रवार, 20 जून 2014

तब मेरी दंतकथाएं

आप  चाहें
तो  जुबां  काट  दें  मेरी
मगर  चुप  नहीं  रहूंगा  मैं

ज़ुबां  कट  गई
तो  मैं 
अपनी  अंगुलियों  के
इशारों  से  कहूंगा
लिख-लिख  कर
आसमान  सर  पर  उठा  लूंगा
तब  क्या  करेंगे  आप  ?

आप  चाहें  तो
मेरी  अंगुलियां  भी  काट  दें
तब  मैं 
अपनी  निगाहों  से  बात  करूंगा
वह  शायद  आपको
बहुत  भारी  पड़ेगा

आप  चाहें  तो  मेरे
सारे  अंग  छिन्न-भिन्न  कर  दें
मगर  तब  भी
मैं  संवाद  का
कोई  न  कोई   ज़रिया
ढूंढ  ही  लूंगा

मुझे  मौन  करने  का
एक  ही  रास्ता  है  आपके  पास
मेरी  हत्या  कर  देना …

मगर 
तब  मेरी  दंतकथाएं
पीछा  नहीं  छोड़ेंगी  आपका
सात  जन्म  तक
पीढ़ी  दर  पीढ़ी  !

                                                       (2014)

                                                -सुरेश  स्वप्निल

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बेहद सुन्दर। मन को छू गई आपकी रचना