आप चाहें
तो जुबां काट दें मेरी
मगर चुप नहीं रहूंगा मैं
ज़ुबां कट गई
तो मैं
अपनी अंगुलियों के
इशारों से कहूंगा
लिख-लिख कर
आसमान सर पर उठा लूंगा
तब क्या करेंगे आप ?
आप चाहें तो
मेरी अंगुलियां भी काट दें
तब मैं
अपनी निगाहों से बात करूंगा
वह शायद आपको
बहुत भारी पड़ेगा
आप चाहें तो मेरे
सारे अंग छिन्न-भिन्न कर दें
मगर तब भी
मैं संवाद का
कोई न कोई ज़रिया
ढूंढ ही लूंगा
मुझे मौन करने का
एक ही रास्ता है आपके पास
मेरी हत्या कर देना …
मगर
तब मेरी दंतकथाएं
पीछा नहीं छोड़ेंगी आपका
सात जन्म तक
पीढ़ी दर पीढ़ी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
…
तो जुबां काट दें मेरी
मगर चुप नहीं रहूंगा मैं
ज़ुबां कट गई
तो मैं
अपनी अंगुलियों के
इशारों से कहूंगा
लिख-लिख कर
आसमान सर पर उठा लूंगा
तब क्या करेंगे आप ?
आप चाहें तो
मेरी अंगुलियां भी काट दें
तब मैं
अपनी निगाहों से बात करूंगा
वह शायद आपको
बहुत भारी पड़ेगा
आप चाहें तो मेरे
सारे अंग छिन्न-भिन्न कर दें
मगर तब भी
मैं संवाद का
कोई न कोई ज़रिया
ढूंढ ही लूंगा
मुझे मौन करने का
एक ही रास्ता है आपके पास
मेरी हत्या कर देना …
मगर
तब मेरी दंतकथाएं
पीछा नहीं छोड़ेंगी आपका
सात जन्म तक
पीढ़ी दर पीढ़ी !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
…
1 टिप्पणी:
बेहद सुन्दर। मन को छू गई आपकी रचना
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