अकेला होते ही
भय से थर-थर
कांपने लगता है
तानाशाह !
सब दिखावा है
उसकी 56 इंच की छाती
अभेद्य जिरह-बख़्तर
उसकी चमकती हुई तलवार
उसकी तथाकथित वीरता का
एकमात्र रहस्य है
उसकी आज्ञाकारी सेनाएं
उसके आस-पास तैनात अंगरक्षक
आत्म-सम्मान विहीन नौकरशाही ...
उसे अंधेरे से
अपने आस-पास से
यहां तक कि
स्वयं अपने अंगरक्षकों से भी
शाश्वत भय है
वह मृत्यु के नाम से ही
घबरा उठता है
विडम्बना यह है
कि अपने भय से पार पाने के लिए
हत्याएं करने से
डर नहीं लगता उसे ...
तानाशाह कभी आईना नहीं देखता !
जिस दिन वह
स्वयं अपनी रक्त-रंजित आंखों में
आंखें डाल कर देखेगा
उसी दम
दम तोड़ देगा तानाशाह !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
...
भय से थर-थर
कांपने लगता है
तानाशाह !
सब दिखावा है
उसकी 56 इंच की छाती
अभेद्य जिरह-बख़्तर
उसकी चमकती हुई तलवार
उसकी तथाकथित वीरता का
एकमात्र रहस्य है
उसकी आज्ञाकारी सेनाएं
उसके आस-पास तैनात अंगरक्षक
आत्म-सम्मान विहीन नौकरशाही ...
उसे अंधेरे से
अपने आस-पास से
यहां तक कि
स्वयं अपने अंगरक्षकों से भी
शाश्वत भय है
वह मृत्यु के नाम से ही
घबरा उठता है
विडम्बना यह है
कि अपने भय से पार पाने के लिए
हत्याएं करने से
डर नहीं लगता उसे ...
तानाशाह कभी आईना नहीं देखता !
जिस दिन वह
स्वयं अपनी रक्त-रंजित आंखों में
आंखें डाल कर देखेगा
उसी दम
दम तोड़ देगा तानाशाह !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
...
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