क्या होगा
अबकी बार ?
कोई है तैयार
यह सुनने, समझने
और मानने को
कि सब प्रयास हो जाएंगे
बेकार
पिछली बार की ही भांति
परिवर्त्तन क्या इस तरह
इतनी सरलता से हो जाते हैं ?
न कोई भूकंप आया
न ज्वालामुखी फूटा
न कोई ऐसा जन-उभार
जो उलट-पलट दे सारे ताज-तख़्त
न हो सकी साफ़
समाज के दिल-दिमाग़ पर
शताब्दियों की जमी हुई धूल
अगर कुछ बदला भी
तो सिर्फ़ नज़र आने वाले
कुछ-एक चेहरे
क्या इसी परिवर्त्तन के लिए
उतावले हो रहे थे सब ???
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
...
अबकी बार ?
कोई है तैयार
यह सुनने, समझने
और मानने को
कि सब प्रयास हो जाएंगे
बेकार
पिछली बार की ही भांति
परिवर्त्तन क्या इस तरह
इतनी सरलता से हो जाते हैं ?
न कोई भूकंप आया
न ज्वालामुखी फूटा
न कोई ऐसा जन-उभार
जो उलट-पलट दे सारे ताज-तख़्त
न हो सकी साफ़
समाज के दिल-दिमाग़ पर
शताब्दियों की जमी हुई धूल
अगर कुछ बदला भी
तो सिर्फ़ नज़र आने वाले
कुछ-एक चेहरे
क्या इसी परिवर्त्तन के लिए
उतावले हो रहे थे सब ???
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
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