रक्त के दबाव से
फटने लगी हैं
धमनियां और शिराएं
मौसम इतना क्रूर कैसे
होने लगा है आजकल ?
हां, यह सत्य है कि इसकी पृष्ठभूमि
तैयार की है
कुछ जाति-द्रोही मनुष्यों ने
जो नहीं चाहते कि प्रकृति
एक समान व्यवहार करती रहे
संसार के सभी मनुष्यों
और अन्य प्राणियों के साथ
कि जो मानते हैं अपने को
संसार का नियंता
अपनी गोरी चमड़ी के दम्भ में
और बुद्धि के अतिरेक में
बिना यह समझे
कि प्रकृति ने
समान ही जन्म दिया है
तमाम नस्लों को
वे अन्यायी यह भी नहीं जानते
कि जब प्रकृति प्रतिशोध लेती है
तो नहीं देखती
काली और गोरी त्वचा का फ़र्क़
यद्यपि हम समर्थन करते हैं
प्रकृति के प्रतिशोध का
किंतु निर्दोष प्रजातियों पर
उचित नहीं अकारण इतना अत्याचार
यदि प्रकृति ही भूल जाए
दोषी और निर्दोष का अंतर...
तो मुश्किल नहीं होगा क्या
पृथ्वी के समय-चक्र का चलना ?
प्रकृति स्वयं बताए
कि निर्दोष मनुष्य क्या करें
संकट की इस घड़ी में ?
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
...
फटने लगी हैं
धमनियां और शिराएं
मौसम इतना क्रूर कैसे
होने लगा है आजकल ?
हां, यह सत्य है कि इसकी पृष्ठभूमि
तैयार की है
कुछ जाति-द्रोही मनुष्यों ने
जो नहीं चाहते कि प्रकृति
एक समान व्यवहार करती रहे
संसार के सभी मनुष्यों
और अन्य प्राणियों के साथ
कि जो मानते हैं अपने को
संसार का नियंता
अपनी गोरी चमड़ी के दम्भ में
और बुद्धि के अतिरेक में
बिना यह समझे
कि प्रकृति ने
समान ही जन्म दिया है
तमाम नस्लों को
वे अन्यायी यह भी नहीं जानते
कि जब प्रकृति प्रतिशोध लेती है
तो नहीं देखती
काली और गोरी त्वचा का फ़र्क़
यद्यपि हम समर्थन करते हैं
प्रकृति के प्रतिशोध का
किंतु निर्दोष प्रजातियों पर
उचित नहीं अकारण इतना अत्याचार
यदि प्रकृति ही भूल जाए
दोषी और निर्दोष का अंतर...
तो मुश्किल नहीं होगा क्या
पृथ्वी के समय-चक्र का चलना ?
प्रकृति स्वयं बताए
कि निर्दोष मनुष्य क्या करें
संकट की इस घड़ी में ?
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
...
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