बहुत से चमत्कार
घटित होते हैं
लोकतंत्र के प्रांगण में
मुख्य प्रतिद्वंदियों की
आशाओं के विपरीत ....
अक्सर मुक़ाबला वे जीतते हैं
जो सबसे पीछे दीखते हैं !
न, स्वप्न देखना अपराध नहीं
संसार के किसी भी देश में
किसी भी क़ानून में
और हो भी तो क्या ?
ऐसी कोई दवा भी तो नहीं बनी
आज तक
जो बदल दे
करोड़ों मनुष्यों की
जैविक संरचना
एक ही ख़ुराक़ में !
यही तो आनंद है लोकतंत्र का
कि लड़ते हैं वे
जिनके हाथ में
कोई सूत्र नहीं होता !
हथियार जिनके पास होते हैं
वे पता नहीं कब और कैसे
अपनी रण-नीति तय करते हैं
और देखते ही देखते
खंडित कर देते हैं
सारे साम्राज्य !
छत्र-भंग तो हो कर ही रहेगा
इस बार भी
मगर अगला सिर किसका होगा
जिस पर सजेगा छत्र
यह सिर्फ़
हम ही जानते हैं
जानते हैं
मगर बताएंगे नहीं
किसी को भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
घटित होते हैं
लोकतंत्र के प्रांगण में
मुख्य प्रतिद्वंदियों की
आशाओं के विपरीत ....
अक्सर मुक़ाबला वे जीतते हैं
जो सबसे पीछे दीखते हैं !
न, स्वप्न देखना अपराध नहीं
संसार के किसी भी देश में
किसी भी क़ानून में
और हो भी तो क्या ?
ऐसी कोई दवा भी तो नहीं बनी
आज तक
जो बदल दे
करोड़ों मनुष्यों की
जैविक संरचना
एक ही ख़ुराक़ में !
यही तो आनंद है लोकतंत्र का
कि लड़ते हैं वे
जिनके हाथ में
कोई सूत्र नहीं होता !
हथियार जिनके पास होते हैं
वे पता नहीं कब और कैसे
अपनी रण-नीति तय करते हैं
और देखते ही देखते
खंडित कर देते हैं
सारे साम्राज्य !
छत्र-भंग तो हो कर ही रहेगा
इस बार भी
मगर अगला सिर किसका होगा
जिस पर सजेगा छत्र
यह सिर्फ़
हम ही जानते हैं
जानते हैं
मगर बताएंगे नहीं
किसी को भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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