कितना विचित्र अंधकार है
प्रकाश की संभावना
नज़र ही नहीं आती
इस देश में !
हम तो सर्वज्ञात थे
सारे संसार को
मार्ग दिखाने के लिए…!
बहुत फिसल चुके हम
नैतिक और आध्यात्मिक रूप से
स्वतंत्र होते ही
कई शताब्दियों की परतंत्रता से
आख़िर क्या हुआ ऐसा
क्या यह परतंत्रता का संस्कार है
या हमारी जैविक दुर्बलता ?
निर्णय हमें ही करना है
और परिष्कार भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
.
प्रकाश की संभावना
नज़र ही नहीं आती
इस देश में !
हम तो सर्वज्ञात थे
सारे संसार को
मार्ग दिखाने के लिए…!
बहुत फिसल चुके हम
नैतिक और आध्यात्मिक रूप से
स्वतंत्र होते ही
कई शताब्दियों की परतंत्रता से
आख़िर क्या हुआ ऐसा
क्या यह परतंत्रता का संस्कार है
या हमारी जैविक दुर्बलता ?
निर्णय हमें ही करना है
और परिष्कार भी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-2013) "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1461 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
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