हमें चाहिए
बस, हमारा कन्हैया !
ज़रा सांवला
मेघ जैसा सुयाचित
नयन सूर्य के तेज से जगमगाते
वदन चन्द्रमा ज्यों
शरद पूर्णिमा का
स्निग्ध स्नेह-अमृत से
पूरित-प्रकशित…
बड़ी देर से हम उसे ढूंढते हैं
कहां है, कहां है
हमारा कन्हैया ???
बड़ा प्यारा-प्यारा
सभी का दुलारा
यशोदा की आंखों का तारा कन्हैया !
ज़रा अपने आंगन में उठ कर तो आओ
वो देखो, वो देखो
मचलता, ठिठकता, कभी डगमगाता
न जाने कहां से ये माखन चुरा के
हथेली से मुख तक सभी अंग साने
बड़े ढीठपन से
कभी खिलखिलाता, कभी मुस्कुराता
चला आ रहा है
हृदय का सहारा
हमारा कन्हैया !
कोई उसका मुख, हाथ-पांव धुलाओ
ये घुंघराली अलकें सहेजो-संवारो
मुकुट मोरपंखी धरो शीश पर
एक छोटी सी दिठिया लगाओ
फिर हाथों में स्वर-धन्य बंसी थमाओ ….
ज़रा यूं सजाओ
कि जब वो प्रकट हो
तो कहने लगें
वृन्द-कानन के वासी
यही है, यही है
हमारा कन्हैया !
हमारा कन्हैया
तुम्हारा कन्हैया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
बस, हमारा कन्हैया !
ज़रा सांवला
मेघ जैसा सुयाचित
नयन सूर्य के तेज से जगमगाते
वदन चन्द्रमा ज्यों
शरद पूर्णिमा का
स्निग्ध स्नेह-अमृत से
पूरित-प्रकशित…
बड़ी देर से हम उसे ढूंढते हैं
कहां है, कहां है
हमारा कन्हैया ???
बड़ा प्यारा-प्यारा
सभी का दुलारा
यशोदा की आंखों का तारा कन्हैया !
ज़रा अपने आंगन में उठ कर तो आओ
वो देखो, वो देखो
मचलता, ठिठकता, कभी डगमगाता
न जाने कहां से ये माखन चुरा के
हथेली से मुख तक सभी अंग साने
बड़े ढीठपन से
कभी खिलखिलाता, कभी मुस्कुराता
चला आ रहा है
हृदय का सहारा
हमारा कन्हैया !
कोई उसका मुख, हाथ-पांव धुलाओ
ये घुंघराली अलकें सहेजो-संवारो
मुकुट मोरपंखी धरो शीश पर
एक छोटी सी दिठिया लगाओ
फिर हाथों में स्वर-धन्य बंसी थमाओ ….
ज़रा यूं सजाओ
कि जब वो प्रकट हो
तो कहने लगें
वृन्द-कानन के वासी
यही है, यही है
हमारा कन्हैया !
हमारा कन्हैया
तुम्हारा कन्हैया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर कविता.. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ....
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