मैं / जली-कटी सुनाने का आदी हूं !
चीखूंगा-चिल्लाऊंगा / सबको दूंगा अभिशाप
मेरा क्या कर लेंगे आप ?
पहले दीपक को गाली दी थी
अब सूरज को दूंगा / आप रोकेंगे मुझे ?
हिम्मत है तो आ जाइए / अपनी मर्दानगी आज़माइए
कम से कम/ चुप तो नहीं कर सकेंगे मुझे आप !
यह तो / आपकी ही नज़रों में अवैध है
बोलने की आज़ादी / दी है हमें / शायद / आपको इसका खेद है
तो छीन लीजिए यह आज़ादी भी /-
और अपनी मां के गटर में / डाल आइए !
लेकिन / खाने-पीने और कमाने से वञ्चित आदमी का /
खुला हुआ मुंह
गालियां नहीं / तो क्या / तुलसी के भजन सुनाएगा ?
ग़रीबों का सूखता लहू / एक दिन / रंग लाएगा।
क्या तुम / क़यामत के उस दिन के लिए / तैयार हो ?
नफ़रत की आग / बुरी होती है / मेरे यार ! / जल जाओगे।
हमें छुओ / हमें जानो / हमारे क़रीब आओ
हमारे दुःख-सुख में / हाथ बंटाओ / तो जी सकोगे।
वरना / याद रखना- यार / वक़्त के सर से / जब पानी गुज़र जाएगा
तुम्हारे अस्तित्व का / कोई भी चिह्न / नहीं नज़र आएगा।
मेरी आवाज़ / वक़्त की तरफ़ से / चेतावनी है तुम्हें
सुनो न सुनो / तुम्हारी मर्ज़ी !
फिर भी / मैं/ चीखूंगा-चिल्लाऊंगा / सबको दूंगा अभिशाप
मेरा क्या कर लेंगे आप ?
( 1976 )
-सुरेश स्वप्निल
*प्रकाशन: 'देशबंधु', भोपाल, 1976, 'अंतर्यात्रा'-13, 1983 एवं अन्यत्र। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
चीखूंगा-चिल्लाऊंगा / सबको दूंगा अभिशाप
मेरा क्या कर लेंगे आप ?
पहले दीपक को गाली दी थी
अब सूरज को दूंगा / आप रोकेंगे मुझे ?
हिम्मत है तो आ जाइए / अपनी मर्दानगी आज़माइए
कम से कम/ चुप तो नहीं कर सकेंगे मुझे आप !
यह तो / आपकी ही नज़रों में अवैध है
बोलने की आज़ादी / दी है हमें / शायद / आपको इसका खेद है
तो छीन लीजिए यह आज़ादी भी /-
और अपनी मां के गटर में / डाल आइए !
लेकिन / खाने-पीने और कमाने से वञ्चित आदमी का /
खुला हुआ मुंह
गालियां नहीं / तो क्या / तुलसी के भजन सुनाएगा ?
ग़रीबों का सूखता लहू / एक दिन / रंग लाएगा।
क्या तुम / क़यामत के उस दिन के लिए / तैयार हो ?
नफ़रत की आग / बुरी होती है / मेरे यार ! / जल जाओगे।
हमें छुओ / हमें जानो / हमारे क़रीब आओ
हमारे दुःख-सुख में / हाथ बंटाओ / तो जी सकोगे।
वरना / याद रखना- यार / वक़्त के सर से / जब पानी गुज़र जाएगा
तुम्हारे अस्तित्व का / कोई भी चिह्न / नहीं नज़र आएगा।
मेरी आवाज़ / वक़्त की तरफ़ से / चेतावनी है तुम्हें
सुनो न सुनो / तुम्हारी मर्ज़ी !
फिर भी / मैं/ चीखूंगा-चिल्लाऊंगा / सबको दूंगा अभिशाप
मेरा क्या कर लेंगे आप ?
( 1976 )
-सुरेश स्वप्निल
*प्रकाशन: 'देशबंधु', भोपाल, 1976, 'अंतर्यात्रा'-13, 1983 एवं अन्यत्र। पुनः प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
3 टिप्पणियां:
:-)
bahut-bahut dhanyawad, bandhuvar.
bahut-bahut dhanyawad, bandhuvar.
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