यह जंगल की आग है, महाशय !
पहले तो लगती नहीं आसानी से
और कहीं लग जाए
तो सुलगती रहती है
बरसों-बरस !
यह जंगल है, महाशय
आपका शहर नहीं
यह सहिष्णुता का ज्वलंत उदहारण है
यहां हिंसा भी होती है
तो सिर्फ़ जीवन के लिए
यहां कोई नहीं खाता अपनी भूख से ज़्यादा
और न कोई सहेज कर रखता है
अपनी आवश्यकता से अधिक
यह जन्म-स्थली है
तुम्हारी तमाम संस्कृतियों की
पाठशाला है उस मनुष्यता की
जिसका नाम ले-ले कर
तुम करते हो बर्बरतम अत्याचार
अपने ही स्वजातियों पर
और अपने स्वदेशियों पर !
हमारे जंगल में तो नहीं होता ऐसा
क्या सिर्फ़ इसीलिए
तुम मिटा देना चाहते हो
जंगलों के नामो-निशान ?
चलो, कर देखो यह भी
मिटा दो स्वयं ही
अपने अस्तित्व के श्रेष्ठतम प्रमाणों को
बदल दो सारी पृथ्वी को
कंक्रीट के जंगल में !
याद रखना मगर
कि अगर आग लग गई एक बार
जंगल में
तो शताब्दियां भी कम पड़ जाएंगी
बुझाने में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
पहले तो लगती नहीं आसानी से
और कहीं लग जाए
तो सुलगती रहती है
बरसों-बरस !
यह जंगल है, महाशय
आपका शहर नहीं
यह सहिष्णुता का ज्वलंत उदहारण है
यहां हिंसा भी होती है
तो सिर्फ़ जीवन के लिए
यहां कोई नहीं खाता अपनी भूख से ज़्यादा
और न कोई सहेज कर रखता है
अपनी आवश्यकता से अधिक
यह जन्म-स्थली है
तुम्हारी तमाम संस्कृतियों की
पाठशाला है उस मनुष्यता की
जिसका नाम ले-ले कर
तुम करते हो बर्बरतम अत्याचार
अपने ही स्वजातियों पर
और अपने स्वदेशियों पर !
हमारे जंगल में तो नहीं होता ऐसा
क्या सिर्फ़ इसीलिए
तुम मिटा देना चाहते हो
जंगलों के नामो-निशान ?
चलो, कर देखो यह भी
मिटा दो स्वयं ही
अपने अस्तित्व के श्रेष्ठतम प्रमाणों को
बदल दो सारी पृथ्वी को
कंक्रीट के जंगल में !
याद रखना मगर
कि अगर आग लग गई एक बार
जंगल में
तो शताब्दियां भी कम पड़ जाएंगी
बुझाने में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
1 टिप्पणी:
एक टिप्पणी भेजें