पानी ख़त्म हो गया है
नदी में, अम्मां !
बहुत दूर जाना पड़े शायद
शाम भी हो सकती है लौटने में
नहीं, अकेले नहीं
गांव की चार-छह लड़कियां
मिल कर ही जाएंगी हम
ढाढ़स बंधा रहता है
एक-दूसरे के साथ से ...
अम्मां, पानी तो सभी को चाहिए
और अब कौन सोचता है
जात-बिरादरी की बातें ?
अम्मां, प्यासे बच्चों को देखें
कि दीन-धरम को रोएं
ढोर-डंगर को किसके भरोसे छोड़ दें ?
तुलसी के पौधे एक ही दिन में मर जाते हैं,
अम्मां !
मर्दों को ज़्यादा दिक़्क़त है
तो वे ख़ुद क्यों नहीं चले जाते
गगरे-घड़े उठा कर ?
पूछ लो दादी सा से
उनके लाड़लों को रोटी खानी है कि नहीं ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
नदी में, अम्मां !
बहुत दूर जाना पड़े शायद
शाम भी हो सकती है लौटने में
नहीं, अकेले नहीं
गांव की चार-छह लड़कियां
मिल कर ही जाएंगी हम
ढाढ़स बंधा रहता है
एक-दूसरे के साथ से ...
अम्मां, पानी तो सभी को चाहिए
और अब कौन सोचता है
जात-बिरादरी की बातें ?
अम्मां, प्यासे बच्चों को देखें
कि दीन-धरम को रोएं
ढोर-डंगर को किसके भरोसे छोड़ दें ?
तुलसी के पौधे एक ही दिन में मर जाते हैं,
अम्मां !
मर्दों को ज़्यादा दिक़्क़त है
तो वे ख़ुद क्यों नहीं चले जाते
गगरे-घड़े उठा कर ?
पूछ लो दादी सा से
उनके लाड़लों को रोटी खानी है कि नहीं ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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