बुधवार, 22 मई 2013

मर्दों को ज़्यादा दिक़्क़त है ...

पानी  ख़त्म  हो  गया  है
नदी  में,  अम्मां !
बहुत  दूर  जाना  पड़े  शायद
शाम  भी  हो  सकती  है  लौटने  में

नहीं,  अकेले  नहीं
गांव  की  चार-छह  लड़कियां
मिल  कर  ही  जाएंगी  हम
ढाढ़स  बंधा  रहता  है
एक-दूसरे  के  साथ  से ...

अम्मां,  पानी  तो  सभी  को  चाहिए
और  अब  कौन  सोचता  है
जात-बिरादरी  की  बातें ?

अम्मां,  प्यासे  बच्चों  को  देखें
कि  दीन-धरम  को  रोएं
ढोर-डंगर  को  किसके  भरोसे  छोड़  दें ?
तुलसी  के  पौधे  एक  ही  दिन  में  मर  जाते  हैं,
अम्मां !

मर्दों  को  ज़्यादा  दिक़्क़त  है
तो  वे  ख़ुद  क्यों  नहीं  चले  जाते
गगरे-घड़े  उठा  कर ?

पूछ  लो  दादी  सा  से
उनके  लाड़लों  को  रोटी  खानी  है  कि  नहीं ?

                                                             ( 2013 )

                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

                                                                 

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