मेरे आस-पास ही रहना, अम्मां !
जैसे-जैसे बुढ़ा रहा हूं ,
तुम्हारी ज़रूरत भी बुढ़ा रही है, अम्मां !
बेहद कमज़ोर, असहाय और बीमार हो गया हूं
तुम्हारे बिना
बहुत भुलक्कड़ भी
अब तो यह भी याद नहीं रहता
कि तुम तो हो ही नहीं संसार में !
हर छोटी-बड़ी बात पर याद आ जाती हो तुम
सशरीर, जैसे एकदम सामने हो
अभी हाल खींच लोगी अपने पास
सर पर हाथ फेरोगी
और मिट जाएंगी मेरी सारी तकलीफ़ें
सारी ज़रूरतें
अपने-आप !
ऐसा जादू सिर्फ़ तुम ही कर सकती हो
अम्मां !
सिर्फ़ तुम ही हो जो आज भी समझ लेती हो
कि कहां दर्द है मुझे
और क्या दवा काम करेगी ?
वह भी तब
जब तुम हो ही नहीं संसार में !
अम्मां, मुझे छोड़ कर मत जाना कभी
भले ही स्मृतियों में रहो ...
मेरे आस-पास ही रहना, अम्मां !
तब भी, जब मैं आ रहा होऊं
तुम्हारे पास !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*सद्यः रचित/ अप्रकाशित/ अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु मात्र सूचना पर उपलब्ध।
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