हां, हम जिएंगे
जीते रहेंगे
रचते रहेंगे अमरत्व की
अपार संभावनाएं
हम विचार हैं
विदेह
हम न दिन में मरते हैं, न रात में
और न संधि-काल में
न अस्त्र से, न शस्त्र से
न किसी ब्रह्मास्त्र से
हम सूर्यत्व हैं, हुज़ूर !
हम मज़दूर हैं
स्वतंत्र, स्वायत्त, संप्रभु
सरफ़रोश सिरजनहार
हमें क्या देर लगती है
नई दुनिया रचने में !
( 2004 )
-सुरेश स्वप्निल
*पूर्णतः मौलिक/अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु सानुमति उपलब्ध।
जीते रहेंगे
रचते रहेंगे अमरत्व की
अपार संभावनाएं
हम विचार हैं
विदेह
हम न दिन में मरते हैं, न रात में
और न संधि-काल में
न अस्त्र से, न शस्त्र से
न किसी ब्रह्मास्त्र से
हम सूर्यत्व हैं, हुज़ूर !
हम मज़दूर हैं
स्वतंत्र, स्वायत्त, संप्रभु
सरफ़रोश सिरजनहार
हमें क्या देर लगती है
नई दुनिया रचने में !
( 2004 )
-सुरेश स्वप्निल
*पूर्णतः मौलिक/अप्रकाशित/अप्रसारित रचना। प्रकाशन हेतु सानुमति उपलब्ध।
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