मौन है फागुन बहुत
इस साल
जाने क्या हुआ है
फाग के अब सुर नहीं मिलते
बयारों में
कोई तो होगा सबब
शायद
किसी ने फिर किया विश्वास
झूठे प्यार पर
या, दर्द जागा
फिर किसी विरही हृदय में
वसंतों में
किसी का प्यार न यूं चोट खाए
मीत मेरे
प्रीत के प्यासे सभी मन एक हैं
वादा करे कोई किसी से, तोड़ दे
वह दर्द उसका , सिर्फ़ उसका ही नहीं
जिसका हृदय घायल हुआ है ....
प्रीत का उपवन अगर ख़ामोश है
ओ मीत मेरे
आओ, इन टूटे दिलों को जोड़ दें
हम बांट दें अपने हृदय की प्रीत सबको !
( 2 मार्च, 1977 )
-सुरेश स्वप्निल
प्रकाशन: 'देशबंधु', भोपाल, मार्च, 1977
इस साल
जाने क्या हुआ है
फाग के अब सुर नहीं मिलते
बयारों में
कोई तो होगा सबब
शायद
किसी ने फिर किया विश्वास
झूठे प्यार पर
या, दर्द जागा
फिर किसी विरही हृदय में
वसंतों में
किसी का प्यार न यूं चोट खाए
मीत मेरे
प्रीत के प्यासे सभी मन एक हैं
वादा करे कोई किसी से, तोड़ दे
वह दर्द उसका , सिर्फ़ उसका ही नहीं
जिसका हृदय घायल हुआ है ....
प्रीत का उपवन अगर ख़ामोश है
ओ मीत मेरे
आओ, इन टूटे दिलों को जोड़ दें
हम बांट दें अपने हृदय की प्रीत सबको !
( 2 मार्च, 1977 )
-सुरेश स्वप्निल
प्रकाशन: 'देशबंधु', भोपाल, मार्च, 1977
1 टिप्पणी:
मौन है फागुन बहुत
इस साल
जाने क्या हुआ है
फाग के अब सुर नहीं मिलते
बयारों में ( 2 मार्च, 1977 )
ye to bahut pahle kee hai kya tab bhi holi ke yahi hal the jo aaj hain ?happy holi to you.
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार अमिताभ बच्चन :सामाजिक और फ़िल्मी शानदार शख्सियत .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
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