यह एक साज़िश है
हवाओ ! तुम्हारे ख़िलाफ़
सागर की सतह पर
ठहरे हुए ग्लेशियर्स
रोकते हैं तुम्हारी राह
मचलो
चक्रवात् बनो
तोड़ दो ग्लेशियर्स के भ्रम
कि उनके पांवों के नीचे
पानी है
ज़मीन नहीं।
इससे पहले कि
खुले हुए होठों पर
ताले, जड़ दिए जाएं
और गढ़े हुए सच
थोप दिए जाएं
असहमति
आवश्यक है।
अपने भिंचे हुए होंठ
खोलो
नारे उछालो
मुट्ठियां बांधो
इससे पहले कि तुम्हारे खुले हुए होंठों पर
रख दिए जाएं
साईलेंसर्स !
( 1980 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/ अप्रसारित। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
हवाओ ! तुम्हारे ख़िलाफ़
सागर की सतह पर
ठहरे हुए ग्लेशियर्स
रोकते हैं तुम्हारी राह
मचलो
चक्रवात् बनो
तोड़ दो ग्लेशियर्स के भ्रम
कि उनके पांवों के नीचे
पानी है
ज़मीन नहीं।
इससे पहले कि
खुले हुए होठों पर
ताले, जड़ दिए जाएं
और गढ़े हुए सच
थोप दिए जाएं
असहमति
आवश्यक है।
अपने भिंचे हुए होंठ
खोलो
नारे उछालो
मुट्ठियां बांधो
इससे पहले कि तुम्हारे खुले हुए होंठों पर
रख दिए जाएं
साईलेंसर्स !
( 1980 )
-सुरेश स्वप्निल
* अप्रकाशित/ अप्रसारित। प्रकाशन हेतु उपलब्ध।
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