एक सूरज है / लिपटा हुआ अँधेरे में /
आकाश पर / बादलों के बीच
और दो हाथ हैं / अपनी नस-नस को झनझनाते हुए /
और सभी तंतुओं की / सम्मिलित शक्ति को /
अँधेरे के विरुद्ध / सहेजते हुए !
और, एक दलदल है / पांवों के ठीक नीचे ....
पांव धंसते जाते हैं / निरंतर /
दलदली कीचड़ में / और हाथ / उठते जाते हैं /
अँधेरा हटाते / सूरज की ओर !
ज़रा देखो / और बताओ / कि सूरज /
कितनी दूर होगा /
उन हाथों से ?
( 1979 )
-सुरेश स्वप्निल
आकाश पर / बादलों के बीच
और दो हाथ हैं / अपनी नस-नस को झनझनाते हुए /
और सभी तंतुओं की / सम्मिलित शक्ति को /
अँधेरे के विरुद्ध / सहेजते हुए !
और, एक दलदल है / पांवों के ठीक नीचे ....
पांव धंसते जाते हैं / निरंतर /
दलदली कीचड़ में / और हाथ / उठते जाते हैं /
अँधेरा हटाते / सूरज की ओर !
ज़रा देखो / और बताओ / कि सूरज /
कितनी दूर होगा /
उन हाथों से ?
( 1979 )
-सुरेश स्वप्निल
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