रोज़-रोज़
हवाएं बदल रही हैंदुनिया
दुनिया को
तुम कुछ मत करना
तुम मत बदलना
बैठे रहना चुपचाप
घर में
हाथ पर हाथ धरे
इस उम्मीद में कि
हवाएं आएं
और बदल दें घर की रंगत
तुम्हारी इच्छा अनुरूप !
न, कोई ज़रूरत नहीं किसी प्रयास की
जब तुम चाहते ही नहीं
कि कुछ बदले
तुम्हारी दिनचर्या में
चलने दो सब कुछ
हवाओं पर छोड़ दो
बदल दें जो बदलना चाहें
आ जाएं किसी भी क्षण
सब कुछ कर डालें
तहस-नहस …
तुम कुछ मत करना
तुम तो आस्तिक हो, वैसे भी !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
....
हवाएं बदल रही हैंदुनिया
दुनिया को
तुम कुछ मत करना
तुम मत बदलना
बैठे रहना चुपचाप
घर में
हाथ पर हाथ धरे
इस उम्मीद में कि
हवाएं आएं
और बदल दें घर की रंगत
तुम्हारी इच्छा अनुरूप !
न, कोई ज़रूरत नहीं किसी प्रयास की
जब तुम चाहते ही नहीं
कि कुछ बदले
तुम्हारी दिनचर्या में
चलने दो सब कुछ
हवाओं पर छोड़ दो
बदल दें जो बदलना चाहें
आ जाएं किसी भी क्षण
सब कुछ कर डालें
तहस-नहस …
तुम कुछ मत करना
तुम तो आस्तिक हो, वैसे भी !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
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