शनिवार, 17 मई 2014

...कोई और सारथि !

शत्रु  की  पताका
फहरा  रही  है
हस्तिनापुर  पर  !

हे  पार्थ !
कौन  था  तुम्हारा  सारथि
किसने  की  थीं 
व्यूह-रचनाएं
कहां  खो  गया 
तुम्हारे  योद्धाओं  का  साहस
उनका  आत्म-बल ?

न,  पार्थ  !
पराजय  के  दंश  से  बड़ा
कोई  घाव  नहीं  होता
कोई  अपमान  बड़ा  नहीं  होता
पराजय  के  अपमान  से

इतनी  ग्लानि,  इतनी  पीड़ा
सह  सकोगे  तुम  ?

प्रतिशोध  की  ज्वाला 
बुझ  तो  नहीं  गई
तुम्हारे  ह्रदय  में  ?

सीखना  ही  होगा  तुम्हें
पराजय  को  विजय  में  बदलना
करनी  ही  होंगी  पूरी
अपेक्षाएं
दीन-हीन  नागरिकों  की 
फहरानी  ही  होगी  फिर  से
अपनी  पताका
हस्तिनापुर  पर ...

अबकी  बार 
चुन  लेना  कोई  और  सारथि  !

                                                             ( 2014 )

                                                       -सुरेश  स्वप्निल

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शनिवार, 10 मई 2014

अगला महाभारत ...!

युद्ध  का  अंतिम  प्रहर
आ  ही  गया,  महावीरों  !

देखना,  कोई  प्रयत्न
शेष  न  रह  जाए
सूर्यास्त  के  पूर्व  ही
जीतना  होगा  युद्ध
झुका  देनी  होंगी
शत्रुओं  की  ध्वजाएं ...

शत्रु  पक्ष  का
एक  भी  योद्धा  शेष  न  रह  पाए
जीवित  अथवा  घायल

मृत्यु  के  मुख  से  लौटा
हर  शत्रु
सौ  शत्रुओं  के  बराबर  होता  है
क्रूर  और  भयावह...

स्थायी  विजय  तभी  संभव  है
जब  मिटा  दी  जाए
शत्रुओं  की  युद्ध  करने  की
सारी  आशाएं/आकांक्षाएं  
और  ख़त्म  कर  दिए  जाएं
सारे  दुस्साहस

युद्ध  के
इस  अंतिम  प्रहर  को 
अकारथ  न  होने  देना
ताकि  अगले  महाभारत  की
भूमिका  स्पष्ट  हो  सके ...!

                                                        ( 2014 )

                                                 -सुरेश  स्वप्निल 

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बुधवार, 7 मई 2014

नीच सोच, नीच कर्म !

मेरा  जन्म-नाम  'न'  वर्ण  से
आरंभ  होता  है
यानी,  वृश्चिक  राशि
अर्थात,  चंद्रमा  की  नीचतम  राशि  !

चंद्रमा  मन  का  स्वामी  होता  है
वृश्चिक  राशि  में  जन्म  लेने  वाले
जातक  का  मन
नीच  भावनाओं,  नीच  विचारों  से  भरा  होता  है
उसके  सभी  कर्म  नीच  होते  हैं
नीच  सोच  से  प्रेरित  !

मंगल  इस  राशि  का  स्वामी
होता  है
व्यक्ति  की  उग्रतम  भावनाओं  का  कारक
यही  कारण  है
मेरी  झगड़ालू  प्रवृत्ति  का  ! 

मेरा  अपने  जन्म-समय  पर
अधिकार  होता
तो मैं  किसी  और  समय  पर
जन्म  लेता  !

मेरी  राशि  का  नैसर्गिक  गुण  है
अवसर  पाते  ही
डंक  मार  देना
मेरा  कोई  मित्र  नहीं  होता
क्योंकि  मैं
सबका  शत्रु  होना  ही
श्रेष्ठ  मानता  हूं  !

बिच्छू  हूं  न  !
सब  मेरे  शत्रु,
मैं  सबका  शत्रु  !
किसी  दिन
कोई  अनजान,  शैतान  बच्चा
मसल  कर  देगा  मुझे
अपने  जूते  से  !

नीच  राशि,  नीच  मन
नीच  सोच,  नीच  कर्म  !

अंत  भला  उच्च  कैसे  होगा  ?

                                                                       ( 2014 )

                                                                -सुरेश  स्वप्निल 

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सोमवार, 5 मई 2014

धर्म का अर्थ ???

वह  निकलता  था
एक  हाथ  में  धर्म-ग्रंथ 
और  दूसरे  हाथ  में  तलवार  लेकर
इस  चेतावनी  के  साथ
कि  या  तो  मेरा  धर्म  स्वीकार  करो
या  मेरी  तलवार  !

उसके  वंशज
कई  शताब्दियों  के  बाद
अचानक  आ  प्रकट  हुए  हैं
देश  में
वे  हाथ  में  तलवार  नहीं  रखते
कोई  चेतावनी  भी  नहीं  देते 
किसी  विधर्मी  को
वे  केवल  संकेत करते  हैं
अपनी  अघोषित,  कुपोषित  सेना  को
और  वे  भूखे-नंगे
टूट  पड़ते  हैं
अपने  ही  जैसे  भूखे-नंगों  की  बस्तियों  पर
तरह-तरह  के  हथियार  लेकर  !

वे  इतिहास  के  उस  कुख्यात  महानायक  के
वर्त्तमान  वंशज
किस  देश,  किस  राष्ट्र,  किस  धर्म  के  हैं  ?
क्या  उनकी  शिराओं  में  भी
वही  रक्त  है
जो  बहता  है  मेरी
और  आपकी  शिराओं  में  ?

क्या  यही  होता  है
धर्म  का  अर्थ  ???


                                                                                 ( 2014 )
     
                                                                         -सुरेश  स्वप्निल

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रविवार, 4 मई 2014

क्या करेंगे आप ?

उसके  एक  आव्हान  पर
दौड़  पड़े 
सारे  के  सारे  हत्यारे
निर्दोष,  निरपराध  मनुष्यों  को
काट-मारने  के  लिए

कौन  है  वह  आदमख़ोर  ?

जानते  सभी  हैं 
आप  और  मैं  भी
मगर  नाम  नहीं  लेगा  कोई
मेरे  सिवा !

मैं  जानता  हूं 
कि  जब  मार  डाला  जाऊंगा  मैं  भी
उसके  भाड़े  के  हत्यारों  के  हाथों
तब 
मेरी  मृत्यु  पर  आंसू  बहाने  वालों  में
आप  भी  होंगे
संभवतः,  सबसे  आगे  !

आप  शायद  मुझे  मार  डालने  वालों  को
जानते  होंगे
मगर  नाम  नहीं  बताएंगे
डर  के  मारे  !

मगर  मैं  इतना  कायर  नहीं  हूं

जब  हत्यारे  आपको  ढूंढते  हुए  आएंगे
आपसे  पहले  मैं  ही  मारा  जाऊंगा
हत्यारों  का  प्रतिरोध  करते  हुए

मेरे  मारे  जाने  के  बाद
क्या  करेंगे  आप  ???

                                                                ( 2014 )

                                                         -सुरेश  स्वप्निल 

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गुरुवार, 1 मई 2014

मई दिवस पर : बोल मजूरा, हल्ला बोल

बोल  मजूरा,  हल्ला  बोल
बोल  जवाना,  हल्ला  बोल
बोल  किसाना,  हल्ला  बोल

हल्ला  बोल  कि  हिल  जाए  धरती,  डोले  आकाश

सदियों  से  तेरी  मेहनत  का
फल  औरों  ने  खाया  है
नहीं-नहीं,  अब  सोना  कैसा
सूरज  सिर  पर  आया  है

हुआ  सबेरा,  आंखें  खोल 
बाज़ू  की  ताक़त  को  तौल
ले  अपनी  मेहनत  का  मोल 
तू  सब  कुछ  है,  अपने  मन  में  पैदा  कर  विश्वास

जाग  कि  दुनिया  को  बतला  दे
क्या  है  तेरी  क़ीमत
अपने  मेहनतकश  हाथों  से
लिख  दे  जग  की  क़िस्मत

तुझसे  आंख  मिलाए  कौन
आंधी  से  टकराए  कौन
अपनी  मौत  बुलाए  कौन
कब  तक  तुझसे  हार  न  मानेंगे  क़ातिल  एहसास

बोल  मजूरा,  हल्ला  बोल 
बोल  जवाना,  हल्ला  बोल
बोल  किसाना,  हल्ला  बोल

हल्ला  बोल  कि  हिल  जाए  धरती,  डोले  आकाश

हल्ला  बोल
हल्ला  बोल
हल्ला  बोल  !!!