रविवार, 9 जून 2013

मैं बड़ा होने लगा !

मैंने  पहाड़  की  ऊंचाई  देखी
और  डर  गया
मैंने  समुद्र  की  गहराई  देखी
और  भी  डर  गया
मैंने  मरुस्थल  का  विस्तार  देखा
और  उसमें  चलती  धूल-भरी  आंधियां  भी
और  बहुत  ज़्यादा  डर  गया ...

एक-एक  कर  चुनौतियां  मेरे  सामने  आती  रहीं
और  मैं  हर  चुनौती  से  डरता  रहा

धीरे-धीरे  चुनौतियां  बड़ी  होती  गईं
और  मैं  उतना  ही  छोटा ...

जिस  दिन  मैंने  अपने  छोटे  होते  जाने  को
महसूस  किया
उसी  दिन
मैं  बड़ा  होने  लगा !

आज मुझे  पता  नहीं 
कि  चुनौती  शब्द
किस  भाषा  का  है !