गुरुवार, 14 मार्च 2013

स्वागत है, हे कला-साधकों..

स्वागत  है, हे  कला-साधकों
आगे  आएं
आप  सुनाएं  राग  कोई  भी
इस  महफ़िल  में
( पञ्चम  से  निषाद  तक
 सारे  स्वर  वर्जित  हैं! )
'दीपक' या  'दुर्गा',  चाहें  तो
गुनगुनाइए
लेकिन, पहले  चार  स्वरों  में
( आगे  के  सारे  स्वर
 'दरबारी' की  ख़ातिर  आरक्षित  हैं! )

ख़ुशफ़हमी  न  रखें,
विरोध  का  तो
ख़्याल  भी  नहीं  चलेगा
टप्पे, ठुमरी
सभी  समर्थन  के  ही  गाएं
वर्ना  धेला  नहीं  मिलेगा !

जल  में  रह कर
बैर  मगर  से  ठाने  रखना
कौन  अक्लमंदी  है  भाई ?
आश्चर्य है,
इतनी  सीधी  बात,  अभी  तक
कैसे  नहीं  समझ  में  आई!

सत्य  सदा  लाञ्छित  होता  है
इसका  रगड़ा  नहीं  पालना
यहां  दाम  अच्छे  मिलते  हैं
बेच  सको  तो
अपनी  स्वरलिपि  बेच  डालना!

                                          ( 1981 )

                                     -सुरेश  स्वप्निल 

*संदर्भ: भा .ज .पा . के पूर्व-अवतार 'भारतीय जनसंघ' का चुनाव-चिन्ह दीपक हुआ करता था, वहीं 1971 के भारत-पाक  युद्ध के पश्चात् पूर्व-प्रधानमंत्री अटल जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री सुश्री इंदिरा गाँधी को 'दुर्गा' की उपमा दी थी। 'दरबारी' वस्तुतः म. प्र. में 1970-80 के दशक में तथाकथित रूप से घटित 'सांस्कृतिक क्रांति' के 
नायक एक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी की तानाशाही-प्रवृत्ति से संदर्भित है।