गुरुवार, 11 जुलाई 2013

शब्दों का समुचित मूल्य !

बहुत-से  शब्द  थे
स्मृति  की  पोटली  में
लगभग  अनगिनत
एक-एक  कर  झिर  गए
जीवन  के  पथ  पर ...

जाने  कब-कहां  छेद  हो  गया !

मैंने  तो
बहुत  सावधानी  से  सहेज  रखी  थी
शब्दों  की  पोटली
अपने  कंधे  पर !

मुझे  पता  नहीं
कि  संसार  के  किस  बाज़ार  में
बिकते  हैं  शब्द
कौन  चोर  ऐसा  हो  सकता  है
जिसे
दूसरे  के  शब्द  चाहिए
जीवन-यापन  के  लिए !
कौन  ग्राहक  होगा  इतना  समृद्ध
कि  चुका  सके
शब्दों  का  समुचित  मूल्य !

यह  भी  संभव  है
कि  सचमुच
मेरी  ही  असावधानी  से
फट  गई  हो  पोटली !


मेरे  शब्द
किसी  के  भी  काम  के  नहीं  हैं
यथार्थतः
और  वस्तुतः
केवल  अपने  ही  शब्द  हैं
जो  पार  करा  सकते  हैं
वैतरणी  जीवन  की !

जो  भी  हो
यदि  आप  में  से  किसी  को
मिले  हों  मेरे  शब्द
तो  लौटा  दें,  कृपया !
मेरा  पता  है ......

                                                ( 2013 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल