रविवार, 26 मई 2013

मौन कोई विकल्प नहीं !

जहां  तंत्र
दिन-प्रतिदिन  षड्यंत्र  रचता  हो
लोक  के  विरुद्ध
वहां 
मौन  कोई  विकल्प  नहीं !

जहां  लोक  का  अस्तित्व
कीड़ों-मकोड़ों  से  अधिक  नहीं
और  तंत्र  तैनात  हो
अपनी  तमाम  सशस्त्र  सेनाओं  के  साथ
धरती  के  चप्पे-चप्पे  पर
जहां  लोक  को  हिंस्र  पशुओं  की  भांति
घर-घर, गली-गली
और  वनों-कंदराओं  से
बिलों  से  खींच-खींच  कर
मृत्यु  के  हवाले  किया  जाने  लगे
जहां  तंत्र  की  निरंकुशता  के  विरुद्ध
आवाज़  उठाना
'राज-द्रोह'  घोषित  कर  दिया  जाए
वहां  मौन  कोई  विकल्प  कैसे  हो  सकता  है  भला ?

युद्ध  तो  युद्ध  है
जब  एक  पक्ष  संवाद  के  लिए
चुनता  हो  बंदूक़
वहां  दूसरे  पक्ष  के  लिए
मौन  कोई  विकल्प  नहीं !

                                                                          ( 2013 )

                                                                   -सुरेश  स्वप्निल