गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

अंतिम पराजय के लिए !

जैसा  ठीक  समझें  हुज़ूर !
आप  चाहेंगे  तो  फिर  लड़  लेंगे
आप  तो  विशेषज्ञ  हैं
युद्ध-कला  के

आप  इतने  उत्कंठित  क्यों  हैं
लेकिन  ?
आप  सोच  रहे  हैं  संभवतः
असावधानी  और  अति-आत्म-विश्वास
ले  डूबा  आपको
किंतु  अर्द्ध-सत्य  है  यह
वस्तुतः 
आप  जब  तक  उत्कंठित  हैं
तब  तक
कभी  समझ  नहीं  पाएंगे
अपनी  पराजय  के  वास्तविक  कारणों  को !

वास्तविकता  तो  यह  है
कि  आपका  चरित्र
आपकी  नीतियां
आपकी  विचारधारा
और  आपकी  रण-नीति
इतने  अधिक  प्रदूषित  हो  चुके  हैं
कि  जब  भी
सत्य,  ईमानदारी  और  न्याय  के  पक्षधर
उतरेंगे  आपके  विरुद्ध
मैदान  में
तब-तब 
केवल  पराजय  ही  हाथ  आनी  है  आपके

बेकार  की  ज़िद  छोड़िये,  हुज़ूर !
हम  जनता  हैं
आपकी  सारी  सम्मिलित  सेनाओं  से
सैकड़ों-हज़ार  गुना

हम  तो  ख़ाली  हाथ  ही  बहुत  हैं
सरकार  !

चुनौती  आपने  दी  है
युद्ध  तो  लड़ना  ही  होगा  आपको

तैयार  हो  जाइए,  महाशय
अपनी  अवश्यंभावी 
अंतिम  पराजय  के  लिए  !

                                                           ( 2013 )

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

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